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"मंच से नहीं कलम से कवि बनो ।"
कोई शिकायत नहीं ऐ जमाने मुझसे, मैं तो अपने यकिन पर शर्मिन्दा हूं।। ©मनीष कुमार बिलावत
मनीष कुमार बिलावत
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माना कि मैं मुक़म्मल नहीं हूँ, पर ख़ुश हूँ कि मरहम हूँ, किसी के लिए जख्म नहीं हूँ। ©मनीष कुमार बिलावत
स्त्री का सब्र सबसे ठोस और लम्बा होता है शायद इसीलिए वह स्त्री हैं और पूजनीय, वंदनीय है। ©मनीष कुमार बिलावत
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अपने ही हाथों से कर दिया आजाद उस परिंदे को ,जिसमे जान बसा करती थी हमारी ।। ©मनीष कुमार बिलावत
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सिर्फ इतना झूकों कि सामने वाला सम्मान से आपको उठा कर खुद से ऊंचा बिठा दे। ©मनीष कुमार बिलावत
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