Anil kumar

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जब भी हँसते हुए बच्चों को देखता हूँ....। मुझे लगता है "ईश्वर" मुझसे प्रेम करता है....।।

 जब भी 
हँसते हुए
 बच्चों को देखता हूँ....।
मुझे लगता है 
"ईश्वर"
मुझसे प्रेम करता है....।।

जब भी हँसते हुए बच्चों को देखता हूँ....। मुझे लगता है "ईश्वर" मुझसे प्रेम करता है....।।

15 Love

राधा की चाहत है कृष्णा, उसके दिल की विरासत है कृष्णा, चाहें कितना भी रास रचा ले कृष्णा, दुनिया तो फिर भी कहती है, राधे-कृष्णा, राधे-कृष्णा....।।

#Janamashtmi2020  राधा की चाहत है कृष्णा,  
उसके दिल की विरासत है कृष्णा,

चाहें कितना भी रास रचा ले कृष्णा,

दुनिया तो फिर भी कहती है,
राधे-कृष्णा, राधे-कृष्णा....।।

जय श्री कृष्णा🙏🏻🙏🏻 #Janamashtmi2020

14 Love

राधा का प्रेम और रूकमणी की कहानी....। कृष्ण कन्हैया की है ये दुनिया दीवानी....।।

#Janamashtmi2020  राधा का प्रेम और रूकमणी की कहानी....।

कृष्ण कन्हैया की है ये दुनिया दीवानी....।।

Happy krishanaasthami🤗🎂🤗 #Janamashtmi2020

14 Love

वो जो उसका प्यार था मुझसे....। वो प्यार था उसका या वहम मेरा....??

#कविता #shayri #poem  वो जो उसका प्यार था मुझसे....।

वो प्यार था उसका या वहम मेरा....??

प्यार था या वहम मेरा....😢😢 #poem #कविता #shayri

6 Love

पलक से पानी गिरा है तो उसको गिरने दो....। कोई पुरानी तमन्ना ही है जो पिघल रही होगी....।।

#पानी #story #write #chai  पलक से पानी गिरा है तो उसको गिरने दो....।

कोई पुरानी तमन्ना ही है जो पिघल रही होगी....।।

गिरने दो इस पानी को....।। #पानी #story #write #chai

5 Love

कितना खेल खेलता इन्सान यहाँ, प्रकृति भी शर्मिन्दा हो जाती है.! किनता बेपरवाह हो जाता है यहाँ, पैसे की ये भूल, सब भूल जाती है.! चाहे कितना भी कष्ट क्यों ना दो इसे, ये अपना कहकर माफ कर जाती है.!! ये इन्सानों सी फितरत नहीं रखता, सब बुरा सहकर भी भूल जाती है..!! तभी तो ये सृष्टि, कहीं धरती, कहीं स्वर्ग, कहीं धरा, तो कहीं प्रकृति कहलाती है..!! सब किया इन्सान का बुरा ये भूल जाती है..! ना माने इसकी तो ये अपना रूप दिखाती है..! खुद को करके खुद से जुदा यहाँ पर, ये अपना भी पूर्ण नाश कर जाती है..!! ये किसी और की नहीं है इस दुनियाँ में, ये हमारी अपनी माँ कहलाती है..! तभी तो ये सृष्टी, कहीं धरती, कहीं स्वर्ग, कहीं धरा, तो कहीं ये प्रकृति कहलाती है..।।

#Dhauladhar_range  कितना खेल खेलता इन्सान यहाँ,
प्रकृति भी शर्मिन्दा हो जाती है.!
किनता बेपरवाह हो जाता है यहाँ,
पैसे की ये भूल, सब भूल जाती है.!
चाहे कितना भी कष्ट क्यों ना दो इसे,
ये अपना कहकर माफ कर जाती है.!!
ये इन्सानों सी फितरत नहीं रखता,
सब बुरा सहकर भी भूल जाती है..!!
तभी तो ये सृष्टि, कहीं धरती, कहीं स्वर्ग,
कहीं धरा, तो कहीं प्रकृति कहलाती है..!!
सब किया इन्सान का बुरा ये भूल जाती है..!
ना माने इसकी तो ये अपना रूप दिखाती है..!
खुद को करके खुद से जुदा यहाँ पर,
ये अपना भी पूर्ण नाश कर जाती है..!!
ये किसी और की नहीं है इस दुनियाँ में,
ये हमारी अपनी माँ कहलाती है..!
तभी तो ये सृष्टी, कहीं धरती, कहीं स्वर्ग, 
कहीं धरा, तो कहीं ये प्रकृति कहलाती है..।।
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