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अंत होने लगा फसाने का अक्ल आने लगी ठिकाने पे ©दिनेश शर्मा
DINESH SHARMA
Tuesday, 6 December | 08:00 pm
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चहरा हसीन था भले फितरत अजीब थी जिस से निगाह मिल गयी उसके करीब थी हम शे'र लिख के भेजते थे इश्क़ में उसे नुक्ते लगा के भेजती लड़की अदीब थी बेरोजगार हो भले जीता रहे सुहाग इद्दत के बाद बिक गयी औरत गरीब थी मैं रोज सोचता था हुआ माज़ी में क्या गलत माज़ी ने आज ये कहा तू बदनसीब थी कर दी विदाई जो दिया आया था उसके साथ बेटी के भाग से मिला वो खुशनसीब थी ©DINESH SHARMA
10 Love
किसी पत्ते पे लिख दूं मैं तेरा जो नाम पोरों से वो पत्ता शाख से भी टूटकर पीला नहीं पड़ता ©दिनेश शर्मा, 23.03.2021 ©DINESH SHARMA
8 Love
अगरचे पास है अपनी उदासी मगर तड़पा रही तेरी उदासी हमारा गम समंदर हो गया है उसी में तैरती रहती उदासी कभी जा कर के देखो मयकदे में वहाँ पर रक्स भी करती उदासी हुआ जो वस्ल हमने तब ये जाना है इसके बाद में लंबी उदासी तुम्हारे होंट खुलते है खुशी में तुम्हारी आंख में रहती उदासी हमारा साथ मत मांगो सफर में हमारे साथ मे चलती उदासी उदासी का चढ़ा है रंग जबसे सभी रंगों पे है भारी उदासी खला से हो चुकी है बात अपनी खुशी से पहले आई थी उदासी दिनेश शर्मा, 12.01.2021 ©DINESH SHARMA
Saturday, 23 January | 08:00 pm
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पांव से पांव पर हाथ जब बन गए वो मुसव्विर थे दो खा सके रोटियां ©दिनेश शर्मा , 03.01.2021
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