आंगन की दीवारें इंतजार करती है इस लम्हे का,
वह नन्ही सी मुस्कान, अब बड़ी होकर कहीं गुम सी गई है।
टूटता तारा दुआ करता है उस पूनम के चांद से ,
वह सुनी कलाई पूछती है उस भाई से ,
क्या बहन के इस प्यार की कोई अमानत बता सकता है ,,
में पूछता हूं उस भाई से जो बहन को गाली दे सकता है।
इस नन्ही सी कलम की परिभाषा से एक भाषा आज निकली है ,
समझो तुम इस बन्धन के पुरवलिखित अनुवानो को ,
जिस आंगन में वह आज लोटी है ,
क्या उसके मन की अभिलाषा निकली है ।।।
❣️❣️दिपेश सुमन ❣️❣️
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