*दलित समाज और ईसाई मिशनरी शिक्षा षड्यंत्र*
जातिवाद हिन्दू समाज की समस्या है।
मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि भारत के दलित कठपुतली के समान नाच रहे है, विदेशी ताकतें विशेष रूप से ईसाई विचारक, अपने अरबों डॉलर के धन-सम्पदा, हज़ारों कार्यकर्ता, राजनीतिक शक्ति, अंतरराष्ट्रीय स्तर की ताकत, दूर दृष्टि, NGO के बड़े तंत्र, विश्वविद्यालयों में बैठे शिक्षाविद आदि के दम पर दलितों को नचा रहे हैं और इसका तात्कालिक लाभ भारत के कुछ राजनेताओं को मिल रहा है और इससे हानि हर उस देशवासी की की हो रही हैं जिसने भारत देश की पवित्र मिट्टी में जन्म लिया है।
ईसाई पादरियों ने दलितों के मन मे अपने इष्ट देवतों के प्रति संशय फैलने के पश्चात *वेदों के सम्बन्ध में भ्रामक प्रचार किय।*
इस चरण में वेदों के प्रति भारतीयों के मन में बसी आस्था और विश्वास को भ्रान्ति में बदलकर उसके स्थान पर बाइबिल को बसाना था।
ईसाई मिशनरी भली प्रकार से जानते है कि गोरक्षा एक ऐसा विषय है जिस से हर भारतीय एकमत है। इस एक विषय को सम्पूर्ण भारत ने एक सूत्र में उग्र रूप से पिरोया हुआ हैं। इसलिए गोरक्षा को विशेष रूप से लक्ष्य बनाया गया। हर भारतीय गोरक्षा के लिए अपने आपको बलिदान तक करने के तैयार रहता है। उसकी इसी भावना को मिटाने के लिए वेद मन्त्रों के भ्रामक अर्थ किये गए। वेदों में मनुष्य से लेकर हर प्राणी मात्र को मित्र के रूप में देखने का सन्देश मिलता है। इस महान सन्देश के विपरीत वेदों में पशुबलि, मांसाहार आदि जबरदस्ती शोध के नाम पर प्रचारित किये गए। इस प्रचार का नतीजा यह हुआ कि अनेक भारतीय आज गो के प्रति ऐसी भावना नहीं रखते जैसी पहले उनके पूर्वज रखते थे।
दलितों के मन में भी यह जहर घोला गया। पुरुष सूक्त को लेकर भी इसी प्रकार से वेदों को जातिवादी घोषित किया गया। जिससे दलितों को यह प्रतीत हो की वेदों में शुद्र को नीचा दिखाया गया है। इसी वेदों के प्रति अनास्था को बढ़ाने के लिए वेदों के उलटे सीधे अर्थ निकाले गए। जिससे वेद धर्मग्रंथ न होकर जादू-टोने की पुस्तक, अन्धविश्वास को बढ़ावा देने वाली पुस्तक लगे। यह सब योजनाबद्ध रूप में किया गया।
*इस संबंध में ईश्वर कृपा से आधुनिक भारत के सबसे अधिक संस्कृत विद्वान स्वामी दयानंदसरस्वती जी ने वेदों का पुनः शुद्ध रूप प्रकट कर मिशनरी का खेल बिगाड़ दिया ।*
इसी सम्बन्ध में मिशनरी साहित्य से वेदों में आर्य-द्रविड़ युद्ध की कल्पना करी गई जिससे यह सिद्ध हो की आर्य लोग विदेशी थे।
यह चरण सफ़ेद झूठ पर आधारित था। पहले आर्यों को विदेशी और स्थानीय मुल निवासियों को स्वदेशी प्रचारित किया गया। फिर यह कहा गया कि विदेशी आर्यों ने मूल निवासियों को युद्ध में परास्त कर उन्हें उत्तर से दक्षिण भारत में भगा दिया। उनकी कन्याओं के साथ जबरदस्ती विवाह किया। इससे उत्तर भारतीयों और दक्षिण भारतीयों में दरार डालने का प्रयास किया गया। इसके अतिरिक्त नाक के आधार पर और रंग के आधार पर भी तोड़ने का प्रयास किया। इससे दाल नहीं गली तो हिन्दू समाज से अलग प्रदर्शित करने के लिए सवर्णों को आर्य और शूद्रों को अनार्य सिद्ध करने का प्रयास किया गया। सत्य यह है कि इतिहास में एक भी प्रमाण आर्यों के विदेशी होने और हमलावर होने का नहीं मिलता। ईसाइयों की इस हरकत से भारत के राजनेताओं ने बहुत लाभ उठाया। फुट डालों और राज करो कि यह नीति बेहद खतरनाक है।
आजकल कुछ क्रिप्टो christain ,मिशनरी & तथाकथित अम्बेडकरवादी लोग आर्यों को विदेशी कह रहे है। ये तर्क के नाम पर ये फ़तवा देते हैं कि ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य आदि सभी विदेशी है ।
अब भीमराव अम्बेडकर जी के ही विचार रखूंगा जिससे ये सिद्ध होगा की आर्य स्वदेशी है।
1) डॉक्टर अम्बेडकर राइटिंग एंड स्पीचेस खंड 7 पृष्ट में अम्बेडकर जी ने लिखा है कि आर्यो का मूलस्थान(भारत से बाहर) का सिद्धांत वैदिक साहित्य से मेल नही खाता। वेदों में गंगा,यमुना,सरस्वती, के प्रति आत्मीय भाव है। कोई विदेशी इस तरह नदी के प्रति आत्मस्नेह सम्बोधन नही कर सकता।
2) डॉ अम्बेडकर ने अपनी पुस्तक "शुद्र कौन"? Who were shudras? में स्पष्ट रूप से विदेशी लेखको की आर्यो के बाहर से आकर यहाँ पर बसने सम्बंधित मान्यताओ का खंडन किया है। डॉ अम्बेडकर लिखते है--
1) वेदो में आर्य जाती के सम्बन्ध में कोई जानकारी नही है।
2) वेदो में ऐसा कोई प्रसंग उल्लेख नही है जिससे यह सिद्ध हो सके कि आर्यो ने भारत पर आक्रमण कर यहाँ के मूलनिवासियो दासो दस्युओं को विजय किया।
3) आर्य,दास और दस्यु जातियो के अलगाव को सिद्ध करने के लिए कोई साक्ष्य वेदो में उपलब्ध नही है।
4)वेदो में इस मत की पुष्टि नही की गयी कि आर्य,दास और दस्युओं से भिन्न रंग के थे।
5)डॉ अम्बेडकर ने स्पष्ट रूप से शुद्रो को भी आर्य कहा है(शुद्र कौन? पृष्ट संख्या 80)
*अब अगर अम्बेडकरवादी सच में अम्बेडकर जी को मानने वाले है तो अम्बेडकर जी की बातो को तो माने ।*
*डॉ अम्बेडकर ईसाइयों के कारनामों से भली भांति परिचित थे। इसीलिए उन्होंने ईसाई बनना स्वीकार नहीं किया था।*
हिन्दू युवा सावधान सचेत रहें ।
©Mr Hari ram Solanki
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