बहुत अंदर गढ़ा है एक अधूरा सा संवाद ,
और गढ़ी हैं एक उम्मीद , जो प्रतीक्षा कर रही हैं इन संवादो के होने का, वो संवाद इक अधूरापन लिए कुछ सवालों से घिरता जाता है ,जैसे घिरते है मेघ बरसने से पहले , ना जाने ये मेघ कब संवाद बनके बरस पड़ेंगे, कौन जानता है,
वो उम्मीद थकी नहीं है , विवश है लेकिन...
व्यक्ति केवल शरीर से नहीं थकता , बल्कि सबसे ज्यादा थका देती हैं उसे उसकी ही विवश उम्मीद , तोड़ कर रख देती हैं उसका हौसला कई बार , हौसला ,उन गड़े हुए अधूरे संवादों से उभर कर आगे निकल जाने का,
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