तु मेरी ज़िंदगी है या कोई उलझन है,
ना जाने क्या, क्यूँ और किससे अनबन हैं,
बेबुनियाद सी खुशियाँ लगती और बिना बात ही चलती धड़कन है,
तु जिंदगी हैं या कोई उलझन हैं,,
कभी ढ़लती सी शाम है तो कभी तेज धूप सी तड़पन हैं,,
तु मेरी ज़िंदगी है या कोई उलझन हैं,
कभी बिना बरसात ही बिता सावन तो कभी
बिन मौसम ही बूंदों की छन छन है,
बहुत कुछ कहने को है पर
फिर भी चुप रहने की ही अड़चन है,
शिकायत किससे की जाए और किस मुह से की जाए,
उलझाने वाले भी तो अपने और उनका अपनापन हैं,,
तु मेरी ज़िंदगी है या कोई उलझन हैं,।।।। Pk..
©Priiyanka Gujjar
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