तन तुम्हारा भुज बलो से, जेवरों जैसा जड़ा है
नर तुम्हारा बल जगत में,देव याचन से बड़ा है!
जब कभी मन हारकर के,या व्यथित हो टूट जाए
तड़ फड़ाती साधना भी, जब विवश हो छूट जाए
लड़ खड़ाते पांव थमने में,विफल जब हो रहे हों
याचना आराध्य ही जब,अनसुनी सब कर रहे हों
तब विकलता जीत जाने की,तुम्हारा देवता है!
नर तुम्हारा बल जगत में,.............!
जानकी के मोह में जब, राम लंका जीतते हो
द्रौपदी को दाव धर के,युद्ध पांडव लड़ रहें हो
तात ही जब कुल विनाशी,लोभ के कारण बने हो
नेह नातों को भुलाकर, धड़ फलों सम कट रहे हो!
दोष मानव भाल मढ़कर,मोहना शव मध्य खड़ा है!
नर तुम्हारा बल जगत में देव........
बीच यौवन जो सजन के प्रेम से त्यागी गई हो
प्रीत का बंधन वियोगन भेष का कारण बनी हो
आह से अबला कहीं जब पीटती हो सिर रूदन में
तब बता ओ कौन सी मैं मापनी देखूं बहर में!
लेखनी को भाग्य ने अपने बहुत विधिवत गढ़ा है
नर तुम्हारा बल जगत में...................…......!
@योगिनी काजोल पाठक
©Yogini Kajol Pathak
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