जब भी वक़्त मिले
तो
ख़ुद को ख़ुद से मिलाना |
अगर वक़्त मिले
तो
क़बर पर जाना
किसकी क्या फरियाद है
बता के आना|
जब भी वक़्त मिले
तो
वक़्त क्या है?,इसकी ताबीर समझना
वक़्त की भिनी, घनी तासीर परखना|
ये वक़्त अपने ही पहियों का ग़ुलाम है
ना रुकता, ना थमता, बे-लगाम है|
जो अडीग- निडर होकर सह जाए,
वक़्त की पाबंदी,बुलंदी और लगाम उसके हाथ |
जो सहम-डर कर बह जाए,
वक़्त की गहरी अविस्मरणीय सिख उसके साथ |
©Shayeesta Hasnain
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