Govind Soni Mandawa

Govind Soni Mandawa

Motivational Poet Writer

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Motivational Mantra - Talk Show

Motivational Mantra - Talk Show

Tuesday, 17 January | 09:59 pm

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#कविता #HappyMothersDay #pyaarimaa  Happy 
Mother's Day

था जब से उसके गर्भ में! तब से प्रेम-करुणा, मानवता का पाठ पढ़ाती है! बच्चे की पहली गुरु कहलाती है! अपने अंश को, हज़ार गुणा दर्द सहकर! इस संसार से रूबरू करवाती है! ज़नाब, यूँही वो माँ थोड़ी कहलाती है! अपने अबोध नादान को, सूखे में सुलाकर, खुद हँसते हँसते गीले में सो जाती है! ज़नाब, यूँही वो माँ थोड़ी कहलाती है! तेल डाल! काजल लगाकर! माटी के पुतले को, चाँद बताती है!! नजर ना लगे लाल को! काला टिका भी लगाती है! ज़नाब, यूँही वो माँ थोड़ी कहलाती है! खुद भूखी रहकर, हमारे लिए प्यार पकाती है! सबको खिला कर, अंतिम ख़ुद खाती है! एक अच्छी रोटी सिक जाए लाल के लिए कई बार उँगलियों में, गर्म जलन भी सह जाती है! ज़नाब, यूँही वो माँ थोड़ी कहलाती है! फटे कपड़ों को सिलने में, सुई की चुभन को भी फूल बताती है! हर लम्हा हमारे लिए सोचती रहती! हमारी सफलता के लिए ईश्वर से, मनोकामनाओं का भण्डार लगाती! ज़नाब, यूँही वो माँ थोड़ी कहलाती है! जो कभी हो जाते बीमार, तो नजर उतारती! लूँण राई करवाती है! रात रात जग कर, जो हम पर अपना ध्यान लगाती है! ज़नाब, यूँही वो माँ थोड़ी कहलाती है! मेरे अंत बुढ़ापे तक वो मुझे नाम से बुलाती है! भले ही कितना बड़ा हो जाऊँ वो मुझे अभी भी बच्चा बताती है!! वो माँ है आज भी मखमल की छड़ी से मार लगाती है! कुछ पल में मोम रूपी, क्रोध पिघलते ही, लाड़ लड़ाती है! ज़नाब, यूँही वो माँ थोड़ी कहलाती है! ज़नाब, यूँही वो माँ थोड़ी कहलाती है! ©Govind Soni Mandawa

#कविता #PARENTS  था जब से उसके गर्भ में! 
तब से प्रेम-करुणा, 
मानवता का पाठ पढ़ाती है! 
बच्चे की पहली गुरु कहलाती है! 
अपने अंश को,
हज़ार गुणा दर्द सहकर!
इस संसार से रूबरू करवाती है! 
ज़नाब, यूँही वो माँ थोड़ी कहलाती है!

अपने अबोध नादान को,
सूखे में सुलाकर,
खुद हँसते हँसते
गीले में सो जाती है! 
ज़नाब, यूँही वो माँ थोड़ी कहलाती है!

तेल डाल! 
काजल लगाकर!
माटी के पुतले को,
चाँद बताती है!!
नजर ना लगे लाल को!
काला टिका भी लगाती है! 
ज़नाब, यूँही वो माँ थोड़ी कहलाती है!

खुद भूखी रहकर,
हमारे लिए प्यार पकाती है!
सबको खिला कर,
अंतिम ख़ुद खाती है!
एक अच्छी रोटी 
सिक जाए लाल के लिए
कई बार उँगलियों में,
गर्म जलन भी सह जाती है!
ज़नाब, यूँही वो माँ थोड़ी कहलाती है!

फटे कपड़ों को सिलने में,
सुई की चुभन को भी फूल बताती है!
हर लम्हा हमारे लिए सोचती रहती!
हमारी सफलता के लिए ईश्वर से, 
मनोकामनाओं का भण्डार लगाती!
ज़नाब, यूँही वो माँ थोड़ी कहलाती है!

जो कभी हो जाते बीमार,
तो नजर उतारती! 
लूँण राई करवाती है! 
रात रात जग कर,
जो हम पर अपना ध्यान लगाती है!
ज़नाब, यूँही वो माँ थोड़ी कहलाती है!

मेरे अंत बुढ़ापे तक वो मुझे 
नाम से बुलाती है! 
भले ही कितना बड़ा हो जाऊँ 
वो मुझे अभी भी बच्चा बताती है!!
वो माँ है आज भी 
मखमल की छड़ी से मार लगाती है!
कुछ पल में मोम रूपी,
क्रोध पिघलते ही,
लाड़ लड़ाती है!
ज़नाब, यूँही वो माँ थोड़ी कहलाती है!
ज़नाब, यूँही वो माँ थोड़ी कहलाती है!

©Govind Soni Mandawa

#PARENTS

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#कविता  था जब से उसके गर्भ में! 
तब से प्रेम-करुणा, 
मानवता का पाठ पढ़ाती है! 
बच्चे की पहली गुरु कहलाती है! 
अपने अंश को,
हज़ार गुणा दर्द सहकर!
इस संसार से रूबरू करवाती है! 
ज़नाब, यूँही वो माँ थोड़ी कहलाती है!

अपने अबोध नादान को,
सूखे में सुलाकर,
खुद हँसते हँसते
गीले में सो जाती है! 
ज़नाब, यूँही वो माँ थोड़ी कहलाती है!

तेल डाल! 
काजल लगाकर!
माटी के पुतले को,
चाँद बताती है!!
नजर ना लगे लाल को!
काला टिका भी लगाती है! 
ज़नाब, यूँही वो माँ थोड़ी कहलाती है!

खुद भूखी रहकर,
हमारे लिए प्यार पकाती है!
सबको खिला कर,
अंतिम ख़ुद खाती है!
एक अच्छी रोटी 
सिक जाए लाल के लिए
कई बार उँगलियों में,
गर्म जलन भी सह जाती है!
ज़नाब, यूँही वो माँ थोड़ी कहलाती है!

फटे कपड़ों को सिलने में,
सुई की चुभन को भी फूल बताती है!
हर लम्हा हमारे लिए सोचती रहती!
हमारी सफलता के लिए ईश्वर से, 
मनोकामनाओं का भण्डार लगाती!
ज़नाब, यूँही वो माँ थोड़ी कहलाती है!

जो कभी हो जाते बीमार,
तो नजर उतारती! 
लूँण राई करवाती है! 
रात रात जग कर,
जो हम पर अपना ध्यान लगाती है!
ज़नाब, यूँही वो माँ थोड़ी कहलाती है!

मेरे अंत बुढ़ापे तक वो मुझे 
नाम से बुलाती है! 
भले ही कितना बड़ा हो जाऊँ 
वो मुझे अभी भी बच्चा बताती है!!
वो माँ है आज भी 
मखमल की छड़ी से मार लगाती है!
कुछ पल में मोम रूपी,
क्रोध पिघलते ही,
लाड़ लड़ाती है!
ज़नाब, यूँही वो माँ थोड़ी कहलाती है!
ज़नाब, यूँही वो माँ थोड़ी कहलाती है!

©Govind Soni Mandawa

था जब से उसके गर्भ में! तब से प्रेम-करुणा, मानवता का पाठ पढ़ाती है! बच्चे की पहली गुरु कहलाती है! अपने अंश को, हज़ार गुणा दर्द सहकर! इस संसार से रूबरू करवाती है! ज़नाब, यूँही वो माँ थोड़ी कहलाती है!

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