मेरी गली से जो रोज़ रोज़ गुजरता है तू
फिर इस दिल में दर्द उठता (होता ) है क्यूं
महकते फूलों के बगीचे का मालिक है तू
तो भंवरा बन मेरे समीप मंडराता है क्यूं
दिल में प्यार बसा के,फ़रमान ए इश्क़ जो लाया है तू
फिर मात- पिता को छोड़ आया है क्यूं
गर जिंदगी से जो थक गया है तू
फिर जिंदगी को ले के बैठा है क्यूं
गर बचपन से प्यार करता है तू
फिर बुढ़ापे में जीने आया है ( जीता है) क्यूं
- अंकित कुमार (उर्फ़ 'रचित')
#मेरा पहला प्यार
सिखाया प्यार का पहला शब्द जिसने
जीना सिखा है मैंने उससे
पलभर के लिए जुदा भी हो जाऊँ तो
नहीं जी पाउँगा उसके बीना
संसार जुदा हो भी जाएं तो, कोई गम नहीं
लड़ लूँगा हर ग़म से मैं, अगर तेरा साथ हो
जख्म जो मिलेगा मुझे, तुझसे बिछड़ने पर
इसे दवा क्या, दूजा प्यार भी नहीं भर पाएगा
तड़प-तड़प के मर जाऊँगा, तेरे प्यार के बीना
क्योंकि तू ही तो है "माँ", मेरा पहला प्यार
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