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अयं निजः परो वेति गणना लघु चेतसाम् | उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम।
करुणेश विश्वकर्मा
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वर्षों हुए बिछड़े हमें तुम भूल क्यों नहीं जाते, आती हैं बहुत हिचकियां मुझको कभी कभी। ©करुणेश विश्वकर्मा
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है तरसते नयन अब मुलाकात हो। बातें जी भर करें ऐसी सौगात हो। लेकर आता है सावन तेरी यादों को, फिर तेरा साथ हो फिर वो बरसात हो। ©करुणेश विश्वकर्मा
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