Nagendra Chaturvedi

Nagendra Chaturvedi Lives in Guna, Madhya Pradesh, India

शौक़िया लिखैय्या, घुमक्कड़, फक्कड़, हसौड़ और दोस्तों के शब्दों में एक बेहतरीन दोस्त।

  • Latest
  • Popular
  • Video

मैं देखता हूं पशु मेले में बिकने जाते हुए पशु विरोध नहीं करते। महिंद्रा पिकअप में बंधे रहते हैं वह दो फीट लंबी एक छोटी सी रस्सी से, खड़े खड़े करते हैं यात्रा गांव से पशुहाट की ओर। और उतार दिए जाते हैं हाट में सैंकड़ों की भीड़ में। मालिक करता है अच्छी कीमत मिलने का इंतजार। करते रहते हैं जुगाली और जरूरी जांच के बाद वह बिक जाते हैं और चल पड़ते हैं अपने नए मालिक के घर। बूढ़े हो जाने पर कोई इनपर ध्यान नहीं देता और हांक दिए जाते हैं यहां वहां। यही मूल अंतर है मानव और पशु में कि पशु विरोध नहीं करते, ना कह पाते हैं अपने मन की बात। पर मानव सोच सकता है, विरोध कर सकता है, चुनने की आजादी है उसे। पर मानव हो जाता है पशु जब वह विरोध नहीं करता और चुन लेता है हर किसी को बिना जांचे परखे एक लंबे अरसे के लिए। फिर कोसता रहता है अपने नए चुनाव को जब आशाओं के विपरीत आने लगते हैं रुझान और करता रहता है परिवर्तन का इंतज़ार। बस यही एक मूल अंतर है या बराबरी भी कहें कि एक मौके पर मानव भी हो जाता है हाट बाजार के पशु; जो विरोध नहीं करते।।। © नगेंद्र ©Nagendra Chaturvedi

#विचार #election #Freedom  मैं देखता हूं पशु मेले में बिकने जाते हुए पशु विरोध नहीं करते। महिंद्रा पिकअप में बंधे रहते हैं वह दो फीट लंबी एक छोटी सी रस्सी से, खड़े खड़े करते हैं यात्रा गांव से पशुहाट की ओर।

और उतार दिए जाते हैं हाट में सैंकड़ों की भीड़ में। मालिक करता है अच्छी कीमत मिलने का इंतजार। करते रहते हैं जुगाली और जरूरी जांच के बाद वह बिक जाते हैं और चल पड़ते हैं अपने नए मालिक के घर।

बूढ़े हो जाने पर कोई इनपर ध्यान नहीं देता और हांक दिए जाते हैं यहां वहां। यही मूल अंतर है मानव और पशु में कि पशु विरोध नहीं करते, ना कह पाते हैं अपने मन की बात।

पर मानव सोच सकता है, विरोध कर सकता है, चुनने की आजादी है उसे। पर मानव हो जाता है पशु जब वह विरोध नहीं करता और चुन लेता है हर किसी को बिना जांचे परखे एक लंबे अरसे के लिए।

फिर कोसता रहता है अपने नए चुनाव को जब आशाओं के विपरीत आने लगते हैं रुझान और करता रहता है परिवर्तन का इंतज़ार। बस यही एक मूल अंतर है या बराबरी भी कहें कि एक मौके पर मानव भी हो जाता है हाट बाजार के पशु; जो विरोध नहीं करते।।।
© नगेंद्र

©Nagendra Chaturvedi

जीवन बीत रहा है हर दिन ऐसे, गर्मी में माटी के घड़े से अपने आप पानी रीत रहा हो जैसे ©Nagendra Chaturvedi

 जीवन बीत रहा है हर दिन ऐसे,
 गर्मी में माटी के घड़े से अपने आप पानी रीत रहा हो जैसे

©Nagendra Chaturvedi

जीवन बीत रहा है हर दिन ऐसे, गर्मी में माटी के घड़े से अपने आप पानी रीत रहा हो जैसे ©Nagendra Chaturvedi

12 Love

बस से अपने शहर से सवारी बन कर गुज़र जाने की टीस बहुत बड़ी होती है। जब शहर सो रहा होता है तब मुसाफ़िर जागता रहता है। कंडक्टर की एक आवाज़ कि दस मिनट का स्टॉप है चाय-वाय पीना हो तो पी लो। तो बरबस ही यात्री उतर आता है नीचे तफरी करता है चाय भी फिर पी ही लेता है। सोचता है कितना पास है घर पैदल कितनी ही बार यहां तक आया एक किलोमीटर ही तो है और बाइक से, ऑटो से दो मिनट भी नहीं लगते। काश कोई अपना ही दिख जाए कोई पहचान ले। यात्री के साथ यात्रा करने लगती हैं यादें जो घर परिवार और दोस्तों से जुड़ी हैं, कबसे नहीं मिला सबसे। कितनी ही बार चौराहे की चाय पीने दोस्तों के साथ आया और घर की चाय छोड़ दी। आज वही चाय का कप हाथ में है पर वो मज़ा नहीं है पता नहीं क्यों माँ के हाथ की बनी अदरक वाली चाय पीने का मन है। सामने पोहा है पर पोहा तो घर का बना खाने का मन है। मन का क्या है वह तो कहीं भी दौड़ सकता है। दूसरे दिन की शुरुआत हो चुकी है शहर नींद के आगोश में है इतने वक़्त तक तो घर पर कोई जागता नहीं पर कई बार जब कहीं से बस या ट्रैन से लौट कर आता है बेटा तो 60 के हो चले मां बाप करते रहते हैं इंतेज़ार जो 09 बजे ही सो जाते हैं घर पर। बहुत सुकून होता है उन्हें बेटे के आने पर। ऐसे मौसम में माँ के हाथ के बने मैथी के परांठे उनकी बात ही अलग होती है। वह तुरंत आ जाती है और थाली लगा देती है मानो इसलिए ही जगी हो और फिर निश्चिन्त हो सोने चली जाती है। इतने में आ जाती आवाज़ "चलो भाई अपनी अपनी सीट पर चलो टाइम हो गया"। शरीर यहीं रहा और मन? मन तो घर पर ही रह गया। अटक गया उस कमरे में जिसमें सो रही है ढाई साल की प्यारी बेटी जिसे अपनी बांह में चमीटे है लेटी है उनींदी उसकी माँ और डबल बेड दूसरे किनारे पर जहां वह सोता है वहां अब रखा होता है एक ढोलकनुमा भारी लोड और तकिया ताकि बिटिया महफ़ूज़ रहे करवट लेते वक्त भी। बेटी की माँ भी इंतेज़ार करती रहती है इनके आने का। बस का हॉर्न मन को बुलाता है चल भाई वक़्त हो गया है बस निकलने वाली है, मन चला आता है बेमन से। अब सीट पर है शरीर और वह वहीं अटक गया घर में, नींद उड़ गई है। कब मोबाइल देखते-देखते आधे घंटे के लिए आंख लगती ही है कि कंडक्टर फिर आवाज़ लगाता है "चलो भाई लालघाटी, लालघाटी वाले आ जाओ। हर किसी को जल्दी है अब बस से उतरने की पर यह यात्री सबसे आखिर में उतरता है उनींदा बेमन सा। #बेचैनमनकीयात्र ©Nagendra Chaturvedi

#बेचैनमनकीयात्र #Journey #Family #stairs #Mood  बस से अपने शहर से सवारी बन कर गुज़र जाने की टीस बहुत बड़ी होती है। जब शहर सो रहा होता है तब मुसाफ़िर जागता रहता है। कंडक्टर की एक आवाज़ कि दस मिनट का स्टॉप है चाय-वाय पीना हो तो पी लो। तो बरबस ही यात्री उतर आता है नीचे तफरी करता है चाय भी फिर पी ही लेता है। सोचता है कितना पास है घर पैदल कितनी ही बार यहां तक आया एक किलोमीटर ही तो है और बाइक से, ऑटो से दो मिनट भी नहीं लगते। काश कोई अपना ही दिख जाए कोई पहचान ले।
यात्री के साथ यात्रा करने लगती हैं यादें जो घर परिवार और दोस्तों से जुड़ी हैं, कबसे नहीं मिला सबसे। कितनी ही बार चौराहे की चाय पीने दोस्तों के साथ आया और घर की चाय छोड़ दी। आज वही चाय का कप हाथ में है पर वो मज़ा नहीं है पता नहीं क्यों माँ के हाथ की बनी अदरक वाली चाय पीने का मन है। सामने पोहा है पर पोहा तो घर का बना खाने का मन है। मन का क्या है वह तो कहीं भी दौड़ सकता है।

दूसरे दिन की शुरुआत हो चुकी है शहर नींद के आगोश में है इतने वक़्त तक तो घर पर कोई जागता नहीं पर कई बार जब कहीं से बस या ट्रैन से लौट कर आता है बेटा तो 60 के हो चले मां बाप करते रहते हैं इंतेज़ार जो 09 बजे ही सो जाते हैं घर पर। बहुत सुकून होता है उन्हें बेटे के आने पर। ऐसे मौसम में माँ के हाथ के बने मैथी के परांठे उनकी बात ही अलग होती है। वह तुरंत आ जाती है और थाली लगा देती है मानो इसलिए ही जगी हो और फिर निश्चिन्त हो सोने चली जाती है।

इतने में आ जाती आवाज़ "चलो भाई अपनी अपनी सीट पर चलो टाइम हो गया"। शरीर यहीं रहा और मन? मन तो घर पर ही रह गया। अटक गया उस कमरे में जिसमें सो रही है ढाई साल की प्यारी बेटी जिसे अपनी बांह में चमीटे है लेटी है उनींदी उसकी माँ और डबल बेड दूसरे किनारे पर जहां वह सोता है वहां अब रखा होता है एक ढोलकनुमा भारी लोड और तकिया ताकि बिटिया महफ़ूज़ रहे करवट लेते वक्त भी। बेटी की माँ भी इंतेज़ार करती रहती है इनके आने का।

बस का हॉर्न मन को बुलाता है चल भाई वक़्त हो गया है बस निकलने वाली है, मन चला आता है बेमन से। अब सीट पर है शरीर और वह वहीं अटक गया घर में, नींद उड़ गई है। कब मोबाइल देखते-देखते आधे घंटे के लिए आंख लगती ही है कि कंडक्टर फिर आवाज़ लगाता है "चलो भाई लालघाटी, लालघाटी वाले आ जाओ। हर किसी को जल्दी है अब बस से उतरने की पर यह यात्री सबसे आखिर में उतरता है उनींदा बेमन सा।
#बेचैनमनकीयात्र

©Nagendra Chaturvedi

कर दिया तूने जो मुकम्मल वक़्त मिलने का, मैं उसे नहीं मानता। तेरे-मेरे मिलने का वक़्त तो मुझे बेवक़्त आने वाली हिचकियाँ तय करती हैं ©Nagendra Chaturvedi

#अनुभव #BeautifulMemory #Lovemissing  कर  दिया तूने जो मुकम्मल वक़्त मिलने का, मैं उसे नहीं मानता।
तेरे-मेरे मिलने  का वक़्त तो मुझे बेवक़्त आने वाली हिचकियाँ तय करती हैं

©Nagendra Chaturvedi

Power and Politics उसने बोला- बोल भारत माता की जय, बोल अगर इस देश से प्यार करता है तो ज़ोर से जयकारा लगा। इसने आंखें बंद की दोनों हाथों की मुट्ठी भींची और ज़ोर से नारा दिया- मादरे वतन हिंदुस्तान ज़िंदाबाद, ज़िंदाबाद, ज़िंदाबाद। और जाते-जाते कह गया, भाई अगर समझ जाओगे तो किस्सा यूँ ही खत्म हो जाएगा और सियासतदारों को मुश्किल होगी ©Nagendra Chaturvedi

#brotherhood #hindumuslim #hindustan #Politics #India  Power and Politics उसने बोला- बोल भारत माता की जय, बोल अगर इस देश से प्यार करता है तो ज़ोर से जयकारा लगा।

इसने आंखें बंद की दोनों हाथों की मुट्ठी भींची और ज़ोर से नारा दिया- मादरे वतन हिंदुस्तान ज़िंदाबाद, ज़िंदाबाद, ज़िंदाबाद।

और जाते-जाते कह गया, भाई अगर समझ जाओगे तो किस्सा यूँ ही खत्म हो जाएगा और सियासतदारों को मुश्किल होगी

©Nagendra Chaturvedi
#कविता #Oldpeople #SADFLUTE #Family #Age  👴 ©Nagendra 👵
Trending Topic