तुम्हारे किस्से और भी हैं, इस तनहाई के सिवा
वो किस्से, जिन्हें मैं याद करके मुस्कुराता हूँ
जिनके ख्वाबों में, खो सा जाता हूँ
तेरा वो मखमली रजाई में, कहीं अदृश्य हो जाना
उन बर्फ की चादरों को, तेरा हाथों में भर लाना
तेरी गर्म साँसों के फव्वारे से, मेरा तर-व-तर हो जाना
सर्द हवा के झोकों में, तेरी बाँह को जीभर सहलाना
वो शर्द तो आई पर तू न आयी
तेरी याद तो आयी पर तू न आयी
मैं, आज भी गया उसी किनारे पर
आज भी तू याद आयी, सरसराहट के हर इसारे पर
आज भी घण्टों बतियाता रहा
उन बर्फ के टीलों को, अपनी कहानी सुनाता रहा
इस शर्द में भी, नैनों में 1 प्यास थी
आज भी आँखों को, बस तेरी तलाश थी
पर चादर सिमट गयी, तू न आयी
कोहरा छँटा, पसरी तनहाई
आज भी कुछ न मिली, रुसवाई के सिवा
तुम्हारे किस्से और भी हैं, इस तनहाई के सिवा
- बेलगाम स्याही
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