Shambhavi chandra

Shambhavi chandra

एको अहं, द्वितीयो नास्ति, न भूतो न भाविष्यति।

https://youtube.com/@user-ho7bk5en2b?si=XRPV50zTsxUvoZJi

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#motivational_lines #selfwrittenpoetry #विचार

जागती निगाहों में एक सपना अभी सोया है, हाँ पर मन के एक कोने में हौसला अब भी बोया है, बस ठहरी हूँ अभी, न पथभ्रांत हूँ, अंदर शोर भरा है मेरे, पर बाहर अब शांत हूँ। -शाम्भवी। ©Shambhavi chandra

#कविता #Dreams  जागती निगाहों में एक सपना अभी सोया है,
हाँ पर मन के एक कोने में हौसला अब भी बोया है,
बस ठहरी हूँ अभी, न पथभ्रांत हूँ,
अंदर शोर भरा है मेरे, पर बाहर अब शांत हूँ।
-शाम्भवी।

©Shambhavi chandra

#Dreams

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Ek arsa kho diya maine teri taiyari me.. Pr hausla ab v baki hai. 2 kadam pichhe zaroor h mere.. 4 kadam aage badhne ki taiyari hai. Jaagti nigaahon me ek sapna av soya h... Pr aarzoo ummeed v mann k ek kone me boya h... Thehri hu av...naa path bhraant hu.. Andar shor bhara h mere... Pr bahar abhi shant hu. #UPSC ©Shambhavi chandra

#कविता #Dreams #upsc  Ek arsa kho diya maine teri taiyari me..
Pr hausla ab v baki hai.
2 kadam pichhe zaroor h mere..
4 kadam aage badhne ki taiyari hai.
Jaagti nigaahon me ek sapna av soya h...
Pr aarzoo ummeed v mann k ek kone me boya h...
Thehri hu av...naa path bhraant hu..
Andar shor bhara h mere...
Pr bahar abhi shant hu.
#UPSC

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#Dreams

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मेरी कविता.. . यादों की बारिश... . मन मयूर नाच उठा, भीग कर सावन की बारिश में, बैठी हूँ वो कश्ती लेकर कागज की, फिर तैराने की ख़्वाहिश में। . बहा ले जा रही ये बूंदे मुझे, बचपन की यादों में, सन कर जब आती थी मैं घर, कीचड़ व कादो में। . (इन गीली परछाइयों ने (बादलों ने) यादों की बारिश की हैं आज।) . मन आतुर हो उठा फिर, भीगकर पिट्ठू व फुटबॉल खेलने को, सन जाउँ मिट्टी में फिर, पीठ से लगाऊँ माँ के बेलने को। . जब कभी इन बूंदों के साथ, नन्हे सफेद गोले भी बरसते हैं, उन गोलों को दादाजी के कुर्ते में डाल, भागने को तरसते हैं। . माँ के हाँथ के गर्मागर्म पकोड़े खा..बारिश मे फिर झूमने का मन हो जाता है, कुछ बंदिशें हैं अब, वरना ऐसे मौसम का मज़ा लेने से , खुद को कौन रोक पाता है...खुद को कौन रोक पाता है।- by शाम्भवी। ©Shambhavi chandra

#OneSeason  मेरी कविता..
.
यादों की बारिश...
.
मन मयूर नाच उठा,
भीग कर सावन की बारिश में,
बैठी हूँ वो कश्ती लेकर कागज की,
फिर तैराने की ख़्वाहिश में।
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बहा ले जा रही ये बूंदे मुझे,
बचपन की यादों में,
सन कर जब आती थी मैं घर,
कीचड़ व कादो में।
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(इन गीली परछाइयों ने (बादलों ने)
यादों की बारिश की हैं आज।)
.
मन आतुर हो उठा फिर,
भीगकर पिट्ठू व फुटबॉल खेलने को,
सन जाउँ मिट्टी में फिर,
पीठ से लगाऊँ माँ के बेलने को।
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जब कभी इन बूंदों के साथ,
नन्हे सफेद गोले भी बरसते हैं,
उन गोलों को दादाजी के कुर्ते में डाल,
भागने को तरसते हैं।
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माँ के हाँथ के गर्मागर्म पकोड़े खा..बारिश मे फिर झूमने का मन हो जाता है,
कुछ बंदिशें हैं अब,
वरना ऐसे मौसम का मज़ा लेने से ,
खुद को कौन रोक पाता है...खुद को कौन रोक पाता है।- by शाम्भवी।

©Shambhavi chandra

#OneSeason

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Dont expect love from others. Be the love. ❤️ ©Shambhavi chandra

#Smile  Dont expect love from others.
Be the love.
❤️

©Shambhavi chandra

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