मेरी कविता..
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यादों की बारिश...
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मन मयूर नाच उठा,
भीग कर सावन की बारिश में,
बैठी हूँ वो कश्ती लेकर कागज की,
फिर तैराने की ख़्वाहिश में।
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बहा ले जा रही ये बूंदे मुझे,
बचपन की यादों में,
सन कर जब आती थी मैं घर,
कीचड़ व कादो में।
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(इन गीली परछाइयों ने (बादलों ने)
यादों की बारिश की हैं आज।)
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मन आतुर हो उठा फिर,
भीगकर पिट्ठू व फुटबॉल खेलने को,
सन जाउँ मिट्टी में फिर,
पीठ से लगाऊँ माँ के बेलने को।
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जब कभी इन बूंदों के साथ,
नन्हे सफेद गोले भी बरसते हैं,
उन गोलों को दादाजी के कुर्ते में डाल,
भागने को तरसते हैं।
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माँ के हाँथ के गर्मागर्म पकोड़े खा..बारिश मे फिर झूमने का मन हो जाता है,
कुछ बंदिशें हैं अब,
वरना ऐसे मौसम का मज़ा लेने से ,
खुद को कौन रोक पाता है...खुद को कौन रोक पाता है।- by शाम्भवी।
©Shambhavi chandra
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