सुमनों की बोली मधुपक मिश्रित होती है, जो मन में बीज मित्रता के बोती है, मानव भी तो है सुमन, सुमन-सम मन है, मन से प्रज्ञा की निर्झरणी झरती है, निज उपवन का हर सुमन मान रखता है, लालायित होकर हर कोई लखता है, जो निजी समाज का मान सबल करता है, जगती उस पर ही गर्व किया करती है,,,,,
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