ऐसा क्यूँ माँ?!
खुद तकलीफ़ में रहतीं रही
हमें रहनें नहीं दिया,
खुद दर्द सेह्ती रही ,
हमे सहने नहीं दीया ,
खुद अपने हक का नीवाला ,
हमें हमेशा क्यूँ देती रही ,
खुद अपनी खुशियों को ,
हमारी खुशियों में धूंधती रही ,
खुद के सपनें पूरे नहीं कीए ,
हमारे सपनें पूरे हो, उसमें लगी रही ,
खुद का कभी ना सोच कर,
हमारा सोचती रही
ऐसा क्यूँ माँ ।
.
हाँ मैं ऐसी हूँ ,
क्यूंकि मैं माँ हूँ,
मंमता का आँचल नहीं ,
एक बच्चे का जहां हूँ मैं।
हाँ माँ हूँ मैं ।।
~गुरदीक्षा कौर
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