मकानों के छत से काला पानी टपक रहा था,
आग बुझाने के बाद पानी स्याह हो गया था,
उस कमरे की दीवारें कालिख हो चुकी थी,
अभी तीन महीने पहले वो जहाँ रहने आए थे,
वहाँ कुछ पहचान में नहीं आ रहा था,
जो आलमारी उसने खरीदी थी,
वो लगभग टीन की काली पत्तर लग रही थी,
उसमें रखी उसकी बीबी की साड़ियाँ और कपड़े,
सब कुछ जलकर सिकुड़ गये थे ,
उसके बच्चें के किताब की रैंक आधी जली थी,
पर, किताबें सारी जल चुकी थी,
जिन्हें लेकर आया था गाँव से यहाँ दुनिया बसाने,
उन्हें यमुना में बहाकर आ रहा था क्योंकि,
जले को जला कर संस्कार नहीं किया जाता,
पर जाने फिर भी वो पागलों की तरह क्या ढूँढ रहा था ,
घर में जमे राख में,
आखिर उसे मिल ही गया,
उस फोटो का अधजला टुकड़ा,
जो पिछले रविवार कुतुब मीनार पर,
सबने साथ में खिंचवाई थी।
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