Adil khan

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"❤️Versatile person, Self writer & Philanthropic "❤️

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White चस्का जो लग जाए एक बार तो हर दफा काम आएगी चाय है यारों मोहब्बत नहीं जो बेवफा हो जाएगी ....... ©"SILENT"

#love_shayari  White चस्का जो लग जाए एक बार 
तो हर दफा काम आएगी 
चाय है यारों मोहब्बत नहीं 
जो बेवफा हो जाएगी .......

©"SILENT"

White तेरा प्रेम हलाहल प्यारे, अब तो सुख से पीते हैं विरह सुधा से बचे हुए हैं, मरने को हम जीते हैं। दौड़-दौड़ कर थका हुआ है, पड़ कर प्रेम-पिपासा में हृदय ख़ूब ही भटक चुका है, मृग-मरीचिका आशा में। मेरे मरुमय जीवन के हे सुधा-स्रोत! दिखला जाओ अपनी आँखों के आँसू से इसको भी नहला जाओ। डरो नहीं, जो तुमको मेरा उपालंभ सुनना होगा केवल एक तुम्हारा चुंबन इस मुख को चुप कर देगा ©"SILENT"

#love_shayari  White तेरा प्रेम हलाहल प्यारे, अब तो सुख से पीते हैं
विरह सुधा से बचे हुए हैं, मरने को हम जीते हैं।

दौड़-दौड़ कर थका हुआ है, पड़ कर प्रेम-पिपासा में
हृदय ख़ूब ही भटक चुका है, मृग-मरीचिका आशा में।

मेरे मरुमय जीवन के हे सुधा-स्रोत! दिखला जाओ
अपनी आँखों के आँसू से इसको भी नहला जाओ। 

डरो नहीं, जो तुमको मेरा उपालंभ सुनना होगा
केवल एक तुम्हारा चुंबन इस मुख को चुप कर देगा

©"SILENT"

White रात गए सड़कों पर अक्सर एक न एक आदमी ऐसा ज़रूर मिल जाता है जो अपने घर का रास्ता भूल गया होता है कभी-कभी कोई ऐसा भी होता है जो घर का रास्ता तो जानता है पर अपने घर जाना नहीं चाहता एक बूढ़ा मुझे अक्सर रास्ते में मिल जाता है कहता है कि उसके लड़कों ने उसे घर से निकाल दिया है। कि उसने पिछले तीन दिन से कुछ नहीं खाया है। लड़कों के बारे में बताते हुए वह अक्सर रुआँसा हो जाता है ©"SILENT"

#sad_dp  White रात गए सड़कों पर अक्सर एक न एक आदमी ऐसा ज़रूर मिल जाता है 
जो अपने घर का रास्ता भूल गया होता है 
कभी-कभी कोई ऐसा भी होता है जो घर का रास्ता तो जानता है 
पर अपने घर जाना नहीं चाहता 
एक बूढ़ा मुझे अक्सर रास्ते में मिल जाता है 
कहता है कि उसके लड़कों ने उसे घर से निकाल दिया है। 
कि उसने पिछले तीन दिन से कुछ नहीं खाया है। 
लड़कों के बारे में बताते हुए वह अक्सर रुआँसा हो जाता है

©"SILENT"

#sad_dp

22 Love

White धाराओं में कभी न बहना हाँ प्रतिरोध पड़ेगा सहना हँसकर सहिये चलते रहिये कहते रहे समय के पहिये भावुकता अवरोध बनेगी प्यार बनेगी क्रोध बनेगी किन्तु न ढहिये चलते रहिये कहते रहे समय के पहिये जो भी थके झुके दिख जायें पथ में कहीं रुके दिख जायें उनसे कहिये चलते रहिये कहते रहे समय के पहिये ©"SILENT"

#sad_shayari  White धाराओं में  कभी न  बहना 
हाँ प्रतिरोध  पड़ेगा  सहना 

हँसकर सहिये 
चलते रहिये 
कहते  रहे  समय के पहिये 

भावुकता  अवरोध  बनेगी
प्यार  बनेगी  क्रोध  बनेगी
किन्तु न ढहिये
चलते    रहिये
कहते रहे समय के पहिये

जो भी थके झुके दिख जायें 
पथ में  कहीं रुके दिख जायें 

उनसे कहिये 
चलते रहिये 
कहते रहे समय के पहिये

©"SILENT"

White सवेरे उठा तो धूप खिल कर छा गई थी और एक चिड़िया अभी-अभी गा गई थी। मैंने धूप से कहा: मुझे थोड़ी गरमाई दोगी उधार चिड़िया से कहा: थोड़ी मिठास उधार दोगी? मैंने घास की पत्ती से पूछा: तनिक हरियाली दोगी— तिनके की नोक-भर? शंखपुष्पी से पूछा: उजास दोगी— किरण की ओक-भर? मैंने हवा से मांगा: थोड़ा खुलापन—बस एक प्रश्वास, लहर से: एक रोम की सिहरन-भर उल्लास। मैंने आकाश से मांगी आँख की झपकी-भर असीमता—उधार। सब से उधार मांगा, सब ने दिया । यों मैं जिया और जीता हूँ क्योंकि यही सब तो है जीवन— गरमाई, मिठास, हरियाली, उजाला, गन्धवाही मुक्त खुलापन, लोच, उल्लास, लहरिल प्रवाह, और बोध भव्य निर्व्यास निस्सीम का: ये सब उधार पाये हुए द्रव्य। ©"SILENT"

#Sad_shayri  White सवेरे उठा तो धूप खिल कर छा गई थी
और एक चिड़िया अभी-अभी गा गई थी।

मैंने धूप से कहा: मुझे थोड़ी गरमाई दोगी उधार
चिड़िया से कहा: थोड़ी मिठास उधार दोगी?

मैंने घास की पत्ती से पूछा: तनिक हरियाली दोगी—
तिनके की नोक-भर?
शंखपुष्पी से पूछा: उजास दोगी—
किरण की ओक-भर?

मैंने हवा से मांगा: थोड़ा खुलापन—बस एक प्रश्वास,
लहर से: एक रोम की सिहरन-भर उल्लास।
मैंने आकाश से मांगी
आँख की झपकी-भर असीमता—उधार।

सब से उधार मांगा, सब ने दिया ।
यों मैं जिया और जीता हूँ
क्योंकि यही सब तो है जीवन—
गरमाई, मिठास, हरियाली, उजाला,
गन्धवाही मुक्त खुलापन,
लोच, उल्लास, लहरिल प्रवाह,
और बोध भव्य निर्व्यास निस्सीम का:
ये सब उधार पाये हुए द्रव्य।

©"SILENT"

White नहीं हलाहल शेष, तरल ज्वाला से अब प्याला भरती हूँ। विष तो मैंने पिया, सभी को व्यापी नीलकंठता मेरी; घेरे नीला ज्वार गगन को बाँधे भू को छाँह अँधेरी; सपने जमकर आज हो गए चलती-फिरती नील शिलाएँ, आज अमरता के पथ को मैं जलकर उजियाला करती हूँ। हिम से सीझा है यह दीपक आँसू से बाती है गीली; दिन से धनु की आज पड़ी है क्षितिज-शिञ्जिनी उतरी ढीली, तिमिर-कसौटी पर पैना कर चढ़ा रही मैं दृष्टि-अग्निशर, आभाजल में फूट बहे जो हर क्षण को छाला करती हूँ। ©"SILENT"

#Sad_shayri #Quotes  White 

 
नहीं हलाहल शेष, तरल ज्वाला से अब प्याला भरती हूँ। 

विष तो मैंने पिया, सभी को व्यापी नीलकंठता मेरी; 
घेरे नीला ज्वार गगन को बाँधे भू को छाँह अँधेरी; 
सपने जमकर आज हो गए चलती-फिरती नील शिलाएँ, 

आज अमरता के पथ को मैं जलकर उजियाला करती हूँ। 

हिम से सीझा है यह दीपक आँसू से बाती है गीली; 
दिन से धनु की आज पड़ी है क्षितिज-शिञ्जिनी उतरी ढीली, 
तिमिर-कसौटी पर पैना कर चढ़ा रही मैं दृष्टि-अग्निशर, 

आभाजल में फूट बहे जो हर क्षण को छाला करती हूँ।

©"SILENT"
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