" इक रोज़ तुझसे कहीं ना कहीं वाकिफ यार हो ही जाऊंगा ,
तु मुहब्बत की कुछ गुंजाइश तब्बजो कर मैं तेरा साकी हो ही जाऊंगा ,
फिर फ़िरदौस जो हो सो हो ऐसे में कहीं ना कहीं ,
मैं तेरा मुन्तजिर यार दीदारे-ए-ख़्वाब हो जाऊंगा . "
--- रबिन्द्र राम
#वाकिफ#मुहब्बत#गुंजाइश#तब्बजो#साकी#फ़िरदौस#मुन्तजिर#दीदारे-ए-ख़्वाब
" इक ख़्याल हम से भी हैं तुम हो जो कहीं मुकर रहे ,
तुम्हें अंदाजा हैं कोई इस तरह ,
रुख तो किया मैंने तेरे गलियों का ,
इक तुम हो जो दरीचों पे नज़र नहीं आ रहे . "
--- रबिन्द्र राम
#ख़्याल#मुकर#अंदाजा
" जाने किसकी अज़िय्यत में हूं आखिर क्यों
उसके तमाम हसरतों का मक़बूलियत हैं क्यों "
--- रबिन्द्र राम
#अज़िय्यत -( परेशानी)
#तमाम#हसरतों#मक़बूलियत - (स्वीकृत)
" तुम से मिलना था तुम मिलते - मिलते रह गये ,
रफ़ाक़त करते तो क्या करते तुम महज़ तसव्वुर का ख़्याल बन के रह गये ,
मेरे तहरीरों पे जो आते ये नज़्म हमारे ,
कई दफा तेरी नाम से वाकिफ होते होते रह गये . "
--- रबिन्द्र राम
#रफ़ाक़त#तसव्वुर#ख़्याल#तहरीरों#नज़्म#वाकिफ
" तुम से मिलना था तुम मिलते - मिलते रह गये ,
रफ़ाक़त करते तो क्या करते तुम महज़ तसव्वुर का ख़्याल बन के रह गये ,
मेरे तहरीरों पे जो आते ये नज़्म हमारे ,
कई दफा तेरी नाम से वाकिफ होते होते रह गये . "
--- रबिन्द्र राम
#रफ़ाक़त#तसव्वुर#ख़्याल#तहरीरों#नज़्म#वाकिफ
" मैं ख़्यालो की नुमाइश लिये बैठे हैं बात ज़रा कुछ भी नहीं ,
गुंजाइश जो भी हो सो हो इस अदब से तेरी तन्हाई की सरगोशी लिये बैठे हैं ,
वो शामें वफ़ा मुश्किलात तो हैं ही तेरे बिन इस अंजुमन में ,
तुझसे पुछे बगैर तुझसे मुहब्बत की जुर्म किये बैठे हैं ."
--- रबिन्द्र राम
#नुमाइश#ज़रा#गुंजाइश#सरगोशी#वफ़ा#अंजुमन#मुहब्बत#जुर्म
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