फिर से अंधेरी रातों
के वीरानों में खो जाऊं,
बहुत शोर शराबा है आजकल,
आप कहे तो खामोश हो जाऊं।
सहमें सहमें से जज्बात लिए
अधूरी ख्वाहिशों की चादर,
मै ओड़ कर सो जाऊँ,
आप कहें तो खामोश हो जाऊँ।
खुलेंगी जब आंखें मेरी
तलाशेंगीं फिर से मयखानों को ,
फिर से इन पॆमानों में खो जाऊँ,
आप कहें तो खामोश हो जाऊँ।
लड़खडाते अल्फाजों ऒर
बहकती शायरीयों से ,
महफिल को मदहोश कर जाऊँ,
बहुत शोर शराबा है आजकल
आप कहें तो खामोश हो जाऊँ।
-अर्जुन 'बागी'
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