खुद टपकती छत में रहकर, मुझे शहर का आशिया दिया।
ना जाने उस पिता ने कितने दर्द सह कर मुझे पढ़ने दिया।
खुद तपती धूप में जलकर, मुझे घने जंगल की छाव दिया,
ना जाने उस पिता ने कितने सपने राख कर मुझे ये तोहफा दिया,
मेरी हर गलती पर डॉट कर भी मुझे फिर दुलार किया,
ना जाने मेरी हर हार पर भी मुझसे केसे इतना प्यार किया,
मेरे पिता ने मुझ पर अपना पूरा जीवन कुर्बान किया,
तभी तो पिता से बढ़कर मेरे लिए कोई भगवान ना हुआ।
✍️ विशु
अचानक हवा का रुख कुछ बदल सा गया है,
लोगो का शहर अब कुछ बदल सा गया है,
हर शक्स अब गांव की ओर झुक रहा है,
न जाने प्रकृति कैसा खेल रच रहा है,
मानव इससे बहुत कुछ सीख रहा है,
तभी तो जीवन शैली बदल रहा है,
हर शक्स गलतियों से सीख रहा है,
तभी तो पर्यावरण सुधर रहा है,
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