चेहरों की इतनी फ़िक्र क्यूँ है,
रंगों की इतनी क़द्र क्यूँ है ?
हुस्न अस्ल किरदार का है,
गोरा काले से बेहतर क्यूँ है ?
हसरत को कैसे समझाऊँ,
इतनी छोटी चादर क्यूँ है ?
नीयत का दोष ही सारा है,
तो फ़िर बदनाम नज़र क्यूँ है ?
सब एक ख़ुदा के बच्चे हैं,
तो फ़िर मस्जिद-मंदिर क्यूँ हैं ?
वो भी तो बस एक इंसाँ है,
उसके सजदे में सर क्यूँ हैं ?
सब मिलके साथ नहीं रहते,
इतने छोटे अब घर क्यूँ हैं ?
जिनकी जेबें ही ख़ाली हैं,
उनको रहज़न से डर क्यूँ है ?
ये फ़िक्र बहुत है दुनिया को,
'अल्फ़ाज़' इतना बे-फ़िक्र क्यूँ है !
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