हमने सब कुछ सोचा , सब कुछ चाहा,
सब मिलता गया सहज ही,
सपने देखे जितनी चादर ,
पर पैर कट गये पहले ही ,
ढकने को उन कटे पैर को ,
नई चादर भी मंगवाई गई,
जश्न हुआ और खूब हुआ,
जब नई चादर उढा़ई गई,
हाथ भी थे दो , दो और थे,
अफ़सोस उन्हे भी बांध दिया तब,
जननी जनक नाम थे जिसके,
उन हाथों को भी थाम दिया तब ,
मेरा क्या है कटे पैर पर,
नयी चादर संग जी लूंगी,
पर, स्वन देखना तुम चादर से लम्बे,
शायद उनके आगे झुक जाये किस्मत
निधि
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