गौतम गुँजाल

गौतम गुँजाल Lives in Dewas, Madhya Pradesh, India

जागा लाखों करवटे भीगे अश्क हजार। तब जाकर मैंने किये कागज काले चार।।

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#शिक्षक #कविता #storytelling #Teachersday

भारत माँ के चरण कमल पे शीश चढ़ाकर चले गए। एकलिंग का कहा जिसे अवतार दिखाकर चले गए। हल्दीघाटी के समर पटल पर धूल चटा दी मुगलों को, ऐसे वीर महाराणा वो कहर मचाकर चले गए ।। ✍️ गौतम गुँजाल . ©गौतम गुँजाल

#कविता  भारत माँ के चरण कमल पे शीश चढ़ाकर चले गए।
एकलिंग का कहा जिसे अवतार दिखाकर चले गए।
हल्दीघाटी के समर पटल पर धूल चटा दी मुगलों को,
ऐसे वीर महाराणा वो कहर मचाकर चले गए ।।

                                      ✍️ गौतम गुँजाल


















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©गौतम गुँजाल

भारत माँ के चरण कमल पे शीश चढ़ाकर चले गए। एकलिंग का कहा जिसे अवतार दिखाकर चले गए। हल्दीघाटी के समर पटल पर धूल चटा दी मुगलों को, ऐसे वीर महाराणा वो कहर मचाकर चले गए ।। ✍️ गौतम गुँजाल . ©गौतम गुँजाल

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शुभ दीपावली दीप से दीप की ज्योत दिव्य जल उठे, दीप की इस दिव्यता का पर्व है दीपावली। तम-सा हर घन छटे, ज्यों तेज-सी किरण दिखे, इस किरण की तेजता का तेज है दीपावली। हर्ष और उल्लास सबका, हो भले ही शीर्ष पर, पर प्रतीक्षा की घड़ी, है अवध में आज फिर। अहं पर कर प्रहार , मुक्त करा जानकी को, सिया-राम के आगमन का पर्व है दीपावली।।                                  ✍️ गौतम गुँजाल . . ©गौतम गुँजाल

#शुभ_दीपावली #कविता #Diwali  शुभ दीपावली  दीप से दीप की ज्योत दिव्य जल उठे,
दीप की इस दिव्यता का पर्व है दीपावली।
तम-सा हर घन छटे, ज्यों तेज-सी किरण दिखे,
इस किरण की तेजता का तेज है दीपावली।
हर्ष और उल्लास सबका, हो भले ही शीर्ष पर,
पर प्रतीक्षा की घड़ी, है अवध में आज फिर।
अहं पर कर प्रहार , मुक्त करा जानकी को,
सिया-राम के आगमन का पर्व है दीपावली।।
                                 
                                   ✍️ गौतम गुँजाल






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©गौतम गुँजाल

जिस राजनीति को काजल कहा जाता है कि, काजल के पर्वत पर चढ़ना , चढ़कर पार उतरना , बहुत कठिन है निष्कलंक रहकर के ये सब करना। पर जब जब आप सहारा देते इनका सिर सहलाते, जब जब इनको अपना कहकर अपने गले लगाते। तब तब मुझकों लगता है ये यह जीवन जी लेंगे , और नीलकंठ की तरह यहाँ का सारा विष पी लेंगे।

#कविता  जिस राजनीति को काजल कहा जाता है कि,
 काजल के पर्वत पर चढ़ना , चढ़कर पार उतरना ,
बहुत कठिन है निष्कलंक रहकर के ये सब करना।
 पर जब जब आप सहारा देते इनका सिर सहलाते, 
जब जब इनको अपना कहकर अपने गले लगाते।
 तब तब मुझकों लगता है ये यह जीवन जी लेंगे ,
और नीलकंठ की तरह यहाँ का सारा विष पी लेंगे।

मोदीजी

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देश हो या धर्म हो या जाति की ही बात आये, हिन्द के हर ओष्ठ पर हिंदी ही आ जाती है। पन्त हो , निराला हो या नाम हो प्रसाद का तो, बिंदी बिंदी हिंदी की भी विश्व पे छा जाती है। सूर हुए, तुलसी मीरा ,हुए हे कबीर यही, कलम के सिपाही की तो बात ही निराली हे। और बात क्या बताये तुम्हे भूषण सुभद्रा की, धार छत्रसाल की और रानी झाँसी वाली है। शब्द शब्द हिंदी का समुन्दर - सा डोल रहा, अर्थ गूढ़ है जो जलधि में समाए है। भाषा में प्रवाह है और सार है,विस्तार भी हे, तभी गुण गान हिंदी के सभी ने गाए हैं। आस यही श्वास यही, देश की आवाज यही, भाषा यही देश का अभिमान होना चाहिए। सुप्त हुए भावों को जगाने वाली भाषा यही, शब्दो की हे खान यही, शान होना चाहिए। लो बताओ देश में क्या विडंबना आन पड़ी, हिंदी की ही बात रखने को हिंदी आई है। आधुनिकता की होड़ करने लगे है सभी, हिन्द वाली भूमि पर ही अंग्रेजी छाई है। ✍️ गौतम गुँजाल

#कविता #hindi_poetry #Hindidiwas #Hindi  देश हो या धर्म हो या जाति की ही बात आये,
हिन्द के हर ओष्ठ पर हिंदी ही आ जाती है।
पन्त हो , निराला हो या नाम हो प्रसाद का तो,
बिंदी बिंदी हिंदी की भी विश्व पे छा जाती है।
सूर हुए, तुलसी मीरा ,हुए हे कबीर यही,
कलम के सिपाही की तो बात ही निराली हे।
और बात क्या बताये तुम्हे भूषण सुभद्रा की,
धार छत्रसाल की और रानी झाँसी वाली है।
शब्द शब्द हिंदी का समुन्दर - सा डोल रहा,
अर्थ गूढ़ है  जो जलधि में समाए है।
भाषा में प्रवाह है और सार है,विस्तार भी हे,
तभी गुण गान हिंदी के सभी ने गाए हैं।
आस यही श्वास यही, देश की आवाज यही,
भाषा यही देश का अभिमान होना चाहिए।
सुप्त हुए भावों को जगाने वाली भाषा यही,
शब्दो की हे खान यही, शान होना चाहिए।
लो बताओ देश में क्या विडंबना आन पड़ी,
हिंदी की ही बात रखने को हिंदी आई है।
आधुनिकता की होड़ करने लगे है सभी,
हिन्द वाली भूमि पर ही अंग्रेजी छाई है।
                               
                                
  ✍️  गौतम गुँजाल

राजनीति के महापंक में, खिला जो कमल हे। कमल वो अटल हे , या अटल ही कमल हे। पंक का एक दाग भी, लगने नही दिया है। त्याग तेज तप बल से, पंक को उज्जवल किया है। हिमालय सा हे अटल, द्वंद्व के सम्मुख अड़ा है। चिर कर सब घोर तम को, तेज बनकर वो खड़ा है। कर दिया तन राष्ट्र अर्पित, जीवन समर्पित कर दिया है। इहलोक से परलोक के उस, पथ पे वो अब चल दिया है।

#कविता #अटल  राजनीति के महापंक में,
खिला जो कमल हे।
कमल वो अटल हे ,
या अटल ही कमल हे।
पंक का एक दाग भी,
लगने नही दिया है।
त्याग तेज तप बल से,
पंक को उज्जवल किया है।
हिमालय सा हे अटल,
द्वंद्व के सम्मुख अड़ा है।
चिर कर सब घोर तम को,
तेज बनकर वो खड़ा है।
कर दिया तन राष्ट्र अर्पित,
जीवन समर्पित कर दिया है।
इहलोक से परलोक के उस,
पथ पे वो अब चल दिया है।

#अटल बिहारी वाजपेयी

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