मुझमें तुम बसेरा कर लो
मैं अंधकार तुम सवेरा कर दो
मैं राहों में भटका मुसाफ़िर
मंज़िल तुम हो मुझे मुकम्मल कर दो
ख़्वाब मेरे सब सूखे हैं
तुम आकर उन्हें सुनहरा कर दो
आवाज़ तुम्हें मैं दे रहा हुं
फिर चाहे सुनो या मुझे अनसुना कर दो
मुझमें तुम बसेरा कर लो
मैं अंधकार तुम सवेरा कर दो
हूं तो मैं एक आम सड़क
मगर रात के अंधेरो में यहां होती है चमक
उजालों में सब लोग यहां से गुजरते हैं
चांद जब आसमान में चमक उठता है तब लोग यहां आने से डरते हैं
मैं जहां तक जाता हूं तुम्हे वहां पुरानी इमारतों में दुकानें दिखेंगी
तुम इन दुकानों को देख संकोच नहीं करना सीढ़ियों से ऊपर जाना तुम्हे हर कमरे में नंबर मिलेंगी
यहां से शुरू होता है मेरे बदनाम होने का सफ़र
जिस्म के भूके यहां चारो तरफ आते है नज़र
उस लड़की का दर्द मैं समझ ना सका
घर जाना चाहती थी वो मगर मजबूरियों ने जकड़ रखा
छोटे कमरों में ज़िन्दगी उसकी निकल रही थी
समाज में रहकर भी समाज से अलग जी रही थी
अमीर हो या गरीब कोई अलग नहीं है यहां
जिस्म से बंधे है लोग सब एक है यहां
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