रावण को अभिमान बड़ा था
छल पर, दल पर, बल पर
लेकिन वो भूला था, राम भी
रहते थे भूतल पर
एक सन्यासी ने जब की
अपने धनु की टंकार
अहंकार टूटा रावण का
मच गई हाहाकार
धर्म के सूरज से
अधर्म का अंधियारा ढलता है
राम पराक्रम करते हैं
जिसमें रावण जलता है
©अश्वनी कुमार चौहान
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