बेजार किया खुदको जमाने के आगे मैने तेरे लिए,
होके बेपरवाह अपना रुतबा, अपना रूआब जला दिया।
थक गया था बरसो से तेरी वापसी की राह तकते तकते मैं,
दिल को अनसुना कर आज किताबो में रखा तेरा वो गुलाब जला दिया।।
अश्कों से भर आई थी आंखे मेरी, जब एक एक कर जली पंखुड़ियां उसकी,
लगा के जैसे मैंने आज बरसो से संजो के रखा अपना वो ख्वाब जला दिया।।
कुछ कम जानते है वो लोग जो कहते है के सूखता नही है अशिको की आंखो का पानी,
देख कपिल उसकी बेरुखी ने तेरी आंखों का आब जला दिया।।
©कपिल
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