avinash gupta

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प्रभु पीर हरो हे !कृपावंत, बहुधा छायी बाधा अनंत नर का नर से अनुराग गया, अब दोषों से वैराग्य गया। नर रूप धरे नित भिन्न-भिन्न, पर प्रकृति के कर दिए छिन्न। हे परहितकारी प्रभु प्रवीन! नर नृशंषता के है आधीन। चहुंओर अहिंसित हिंसा है, जाने जन की क्या मंसा है? अस्तित्व स्वयं का गए भूल, अपनों को देते कष्ट शूल फिर आवाहन हे परमदेव, स्मरण कराओ महामूल। त्रिभुवन से तम का तिरस्कार, भयक्षय कर हरिये अंधकार। ©avinash gupta

#हिंदी #कविता #navratri2021 #nojohindi #kavita  प्रभु पीर हरो हे !कृपावंत,
बहुधा छायी बाधा अनंत
नर का नर से अनुराग गया,
अब दोषों से वैराग्य गया।
नर रूप धरे नित भिन्न-भिन्न,
पर प्रकृति के कर दिए छिन्न।
हे परहितकारी प्रभु प्रवीन!
 नर नृशंषता के है आधीन।
चहुंओर अहिंसित हिंसा है, 
जाने जन की क्या मंसा है?
अस्तित्व स्वयं का गए भूल, 
अपनों को देते कष्ट शूल
फिर आवाहन हे परमदेव,
स्मरण कराओ महामूल।
त्रिभुवन से तम का तिरस्कार,
भयक्षय कर हरिये अंधकार।

©avinash gupta
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