कहीं रंगों की होली है,
तो कहीं खून की नदियाँ।
कोई मांगे खीर पकवान,
तो कोई निवाले का मोहताज है।
कहीं खुशियों का ढोल है,
तो कहीं मातम का शोर।
कोई चाहे मखमली खाट,
तो कोई बिताता पत्थरों पर रात है।
कहीं गुदगुदाते सपने हैं,
तो कहीं सहमी बिलखती आँखें।
कोई खीजा है जनक से,
तो कोई जीता लेकर गोद की आस है।
कहीं पर खुदा मेहरबान है,
तो कहीं पर नन्ही किलकारियों से नाराज़ है।
०१ मार्च, २०१८
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