प्रिय सखा,
आशा करती हूँ आप ठीक से होंगे। आज दुनिया तुम्हारा जन्मदिन मना रही है।क्या तुम देख पाते हो ये सब?कंस,शकुनी, दुर्योधनों,दुशासनों में अपनों को पहचान पाते हो क्या अब?अधर्मियों और कपटियों से अपने सत्यवादी, न्यायप्रिय, प्रेम भरे हृदयों को बचा पाते हो क्या? आज अधर्म,झूठ और दिखावा जीतता है। तुम कुछ भी ठीक नहीं कर पाओगे,तुम थक गये हो। माँ यशोदा की दशाब्दियों से आंखे भरी पड़ी हैं,तुम उनके अंक मे लेटकर उन्हें तृप्त करना,उनके हाथों बने भोजन से बल लेना।तुम्हें बहुत दूर तक चलना है अभी,ना जाने कितने श्राप भुगतनें हैं अभी।तुम जानते हो ना तुम श्रापित हो,खुद को श्रापमुक्त करके कोई लीला फिर से रचना।
इति
वन्दना
©Vandna Sood Topa
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