'कोल्हू के बैल' सी है, कहानी मेरी..
सब साथ हैं, जब तक है जवानी मेरी
पूछा जाऊँगा, जब-तक क़दम सलामत हैं..
कोल्हू को खीचनें की, जब-तक मुझमें ताक़त है
मिलेगा दाना, जब तक की तेल की धार बहेगी..
वरना ये शरीर भी.., सब पर भार रहेगी
मेरी ख़ताये भी, तभी तक माफ होंगे..
वरना कहाँ फिर, इंसाफ़ होंगे
जिस दम, मैं टूट जाऊँगा..
दूर सबसे, कहीं.. छूट जाऊँगा
होगा फिर मेरी, लाश पर चर्चा..
दफ़नाने में है, इसको बहुत खर्चा
फिर सब मिलकर, ये फैसला लेंगे..
मुझ बैल को.., कसाई को बेच देंगे
मर कर भी, सब मुझमें फायदा ढूँढेंगे..
मुनाफ़ा लाश से कैसे हो, ये कायदा ढूँढेंगे
कुछ इस तरह ख़त्म होगी, ज़िन्दगानी मेरी..
'कोल्हू के बैल' सी है, कहानी मेरी
:- असगर अली
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