नहीं चाय पर कोई खयाल नहीं है,
चाय के बारे में कुछ नहीं कहना।
वो तो बनी-बनाई मिल जाती है, पी
लेते हैं। स्वाद लगती है, पी लेते हैं।
वो चाय वाला इतनी देर लगाता है कि चाय पती
का रंग और अदरक-इलायची का ज़ायका
पूरी तरह से निखरे। इतनी बार
उबाल लेकर आता हैं। उबलती चाय अपने
बदन के पास कुल्हड़ रखकर उसमें
छानकर, हमें दे देता है “लो भैया”
हम दस रुपए दे आते हैं। कीमत पा दी और क्या।
आजकल प्यार भी यूं ही मिलता है। कोई तो
बनाने में ज़िंदगी लगा रहा है जख्म और
जफ़ा की खाई की नोक फर खड़े होकर,
कोई फ़ुरसत में आकर घूंट भर रहा है दाम देके।
चाय वाले का क्या?
©Nidhi Narwal
Continue with Social Accounts
Facebook Googleor already have account Login Here