आज है कोई जो बिना आंसुओ के रो रहा है,
आज उसका परिवार भूख के मारे सो रहा है।
ना पानी है पीने को ना खाने को कही मिला है दाना,
सुना है, खजाना सरकारी कही खाली हो रहा है।
ना बाहर कोई नजर आ रहा है इन राहों पर,
ना घर तक कोई खाना लेकर आ रहा है।
जो जाए बाहर कही तो पीठ पर डंडे पड़ते है,
ये कैसा रोग आया है, अब साथ जीने से भी डरते है।
खाली है शहर के शहर सारे, वीरान सारी बस्ती हो गई।
शहर का हूँ मै कहने वाली हर हस्ती ना जाने कहाँ खो गई।
इंसान इंसान का बड़ा दुश्मन सा हो गया है,
इंसानियत दिखाने वाला आज कब्र में सो गया है।
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