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Khushboo Sharma
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#FourLinePoetry कितने मजबूर है हम, की आकर बैठे हो तुम दर पे हमारे, और हम बेदर हुए तुमको पुकारे.. जैसे किसी नदियां से ना मिले किनारे, जैसे अम्बर और धरती एक दूजे को दूर से निहारे..!!! ©Khushboo Sharma
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पहले तो मुझे बुरा महसूस हुआ - उस तरह का बुरा नहीं जिसमें गुस्सा भरा हो, बल्कि उस तरह का जिसमें असमर्थता हो कुछ भी कर पाने की, और यह भाव इस तरह का है जैसे मस्तिष्क में एक शून्यता की स्थिती बन जाए, शून्य जिससे पार जाना असंभव सा है...!! हम सब अपराधी ही तो है.... किसी न किसी के, कोई प्रकृति का, कोई इंसानियत का, कोई किसी की भावनाओं का... और कोई प्रतिक्रिया का....!! ©Khushboo Sharma
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