खामोशी भी बोलती है
जिंदगी के हर किरदार को परखती है नापती है तोलती है
साहब खामोशी भी बोलती है
हमसे वह सब कुछ बयां हो जाता है
जो शब्दों के डर से कभी बाहर ही नहीं आ पाता है
जब इंसान व्यथित होता है
भावनाओं के दरिया में डूबा हुआ होता है तब उसे किसी शब्द भंडार की आवश्यकता नहीं होती है
क्योंकि साहब खामोशी भी बोलती है
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