White अब अकेले बैठें सोचता हूं की क्या मिला मुझे बदले मे
उस आँगन को छोड़ चला था मैं सबके लिए खुशियां खरीदने,
बहुत कुछ पाया बहुत कुछ कमाया अपनों की ख़ुशी के लिए
पर
अपने लिए दो वक्त ना कमा पाया,
क्या मिला मुझे आज अकेले बैठें खुद से पूछता हूं,
सब कुछ तो छोड़ आया था मैं उस आँगन
जँहा माँ की आँचल की सुकून भरी छाव थी,
दादी माँ की वो अनोखी कहानियाँ थी,
जगमग करते तारों से सजी रातों मे दोस्तों के संग अनेकों बातें तो थी, और भी बहुत कुछ थी
पर
अब ना ही वो आँगन है और ना ही पल,
सब कुछ तो समय ने लील लिया है,
अब तो मैं हु और मेरी तन्हाई है lllll
©Yogesh Vikrant
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