हर माँ-बाप को चाहिये कि
वो अपनी औलाद को
इतनी रियायत तो ज़रूर बख्शें कि
वो अपने हिस्से की ग़लतियाँ कर सके,
गिर सके, संभल सके,
भटक सके, भटक कर फ़िर सही राह
पकड़ सके
उसपर अपनी अनगिनत उम्मीदों का
बोझ न डाल दें कि गिरना तो दूर
महज़ लड़खड़ाने भर से ही उसकी रूह कांप जाए
©काव्य मंजूषा
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