निवेदिता : एक अनाम रिश्ता
आज से तीन साल पहले की बात हैं I मैं ट्रांसफार होकर एक नए.. अजनबी तो नहीं कह सकते क्योंकि सात साल पहले भी मैं यहाँ आ चूका हूँ , चूकि मेरे ऑफिस का एक ट्रेनिंग सेंटर हैं यहाँ, तो पहले से ही मैं थोड़ा बहुत यहां के बारे मे जानता थाI मैने उसी समय यहां पर कार चलाना भी सिखा थाI ये सब लिखते समय कुछ पुरानी यादों से गुजर रहा हूँ I अपने पूरे ट्रेनिंग के दौरान हम दो लोग थे, जो क्लास समाप्त होने के बाद कार चलाना सिखने जाते थे I
खैर अब हम आते हैं मुख्य मुद्धा परI जब मैं यहा ज्वाइन किया उसके बाद यहां आस-पास कि जगहों को और अच्छे से जानने की इच्छा हुई I उसी समय बहुत सारे नए मित्र बने, उनमे से कुछ अब मेरे बहुत ही खास मित्र बन गए हैं जिनके साथ मैं बहुत सारे ट्रीप किया और आसपास की जगहो को explore किया I
हमलोग रोज सुबह-सुबह एक स्कूल के मैदान में क्रिकेट खेलने जाते थे, जहां आस-पास के छोटे-छोटे बच्चे भी आते थेI अब प्रतिदिन जाने की वजह से कुछ बच्चों से दोस्ती हो गई, एक दिन मैं अभी मैदान में पहुंचा ही था की एक छोटी बच्ची को खेलते समय कन्कड पर गिरने से सिर में चोट आ गयी और खून निकलना शुरू हो गया मैने जैसे ही देखा उसके पास पहुँचा और उसके घर वालो के बारे में पता करने की कोशिश की, जब लगा की समय बर्बाद करने से बच्ची को बहुत नुक़सान हो जायेगा, तो मैने उसको अपनी बाईक पे बैठाया और होस्पिटल ले जाकर मलहम पट्टी करवाकर उसके घर पहुँचा दिया और उसके घर वालो को सारी बात बताया I उसके घर वाले मुझे शुक्रिया बोलते बोलते रुक नहीं रहे थे यहाँ तक कि उसकी माँ ने मेरे बारे में एक बहुत बड़ी बात बोल दी, कि आप मेरे लिए किसी भगवान से कम नहीं हैंI चूकि वो बच्ची एक इकलौती संतान थी, जिसका जन्म शादी के 13 साल बाद हुआ था वो भी काफी मन्नातो के बाद इसलिये माँ बाप का उसके साथ बहुत ज्यादा लगाव था I उसका नाम निवेदिता था और वो पाचवीं कक्षा मे पढ़ती थी I
बहुत ही सामान्य दिनचर्या चल रही थी, मैं रोज कि तरह मैदान में जाता और मेरी नज़रें उस बच्ची को ढूँढ़ती रहती, पर नाही वो दिखी और नाही उसका ग्रुप दिखाI कुछ दिनो बाद हमारा क्रिकेट tournament था, ज़िसके समाप्त होने के बाद हमलोग भी उस मैदान में जाना छोड़ दियेI
एक दिन मैं ऑफिस में काम कर रहा था, तभी कुछ बच्चो ने मेरे दफ्तर मे प्रवेश किया जो एक चैरीटी के लिए पैसा इक्ट्ठा कर रहे थे I बात करने पर पता चला कि ये सब निवेदिता के ही स्कूल से हैंI मैने उनलोगो से निवेदिता के बारे मे जानने की कोशिश की पर उनको, उसके बारे मे कुछ पता ही नही था, क्योंकि वो सब उससे काफी वारिष्ठ कक्षा के छात्र थेI
इस घटना के लगभग एक साल बाद, निवेदिता फिर मेरे सामने खडी थी अपने उन्ही वारिष्ठ दोस्तो के साथ जिनसे उसकी दोस्ती मेरे से मिलने के बाद हुई थी चुकी donation देते समय मैंने एक पर्चा भरा था, ज़िसमे मेरा कांटेक्ट डीटेल था और उसी के सहारे वो सब मेरे से मिलने खास तौर पर निवेदिता को मिलाने लाये थेI अब वो पाचवी कक्षा उत्तीर्ण करके छठी में प्रवेश करने जा रही थी और नयी शुरुआत करने से पहले, उसके माता-पिता ने उसको मेरे से आर्शीवाद के लिए भेजा थाI
जब वो मेरे सामने खड़ी थी, मेरी आँखे भर आयी थी एक अनोखा सा जुड़ाव महसूस कर रहा था I उस समय मेरे पास कुछ देने को नहीं था तो मैने अपनी कलम देते हुए उसके माथे को चुमा और ढेर सारा आशीष देकर विदा कियाI
आज वो अपने दोस्तो के साथ मेरे सपने में आई थी और उसी सपने से प्रेरित होकर मैं पूरी कहानी लिख रहा हुँ I
लेखक
रवि कान्त शाह
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