इंसान की जिंदगी यह कागज की कश्ती की तरह है कब डूब जाए किसी को पता नहीं
हम अपने जिंदगी में अपने दौलत के होरूर में जो कब्र करते हैं जिंदगी कब हमसे छूट जाए किसी को पता नहीं
इंसान की जिंदगी यह कागज की कश्ती की तरह है कब डूब जाए किसी को पता नहीं
हम अपने जिंदगी में अपने दौलत के होरूर में जो कब्र करते हैं जिंदगी कब हमसे छूट जाए किसी को पता नहीं
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