एक अरसे से तन्हाई में फ़िराक़ लिख रहा हूँ,
जो इश्क़ में इश्क़ लिखना सीखा सको,
तो चले आना।
वक़्त-वे-वक़्त की दिल्लगियों पर वक़्त जाया किया है बहुत,
ग़र उम्र भर का साथ निभा सको,
तो चले आना।
दिल का घाव आज भी हरा इतना है,
ग़र कोई प्यार से भी छू ले तो सिहर जाता हूँ,
जो वफ़ा का मरहम लगा सको,
तो चले आना।।
एक अरसे से मेरी मासुमियत मिली नहीं मुझसे,
जो बच्चपन लौटा सको ,
तो चले आना।
जो अँधेरा होते ही साथ छोड़ दे,
भरोसा उस परछाई पर भी नही ,
इसलिए मेरे पीछे नहीं ,मेरे साथ चल सको,
तो चले आना।
ज़िन्दगी की कश्मकश में मुखोटों ने भटकाया है बहुत,
जो रूह का आईना हो सको
तो चले आना,
तलब,तडफ़,जानुनियत अक्सर बेइन्तहा रहती है,
ग़र शायर के, दिल की,रूह की,अल्फाज़ो की ,इश्क़ की, गहराई समझ सको।
तो चले आना।
©ARVIND RANA
Continue with Social Accounts
Facebook Googleor already have account Login Here