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Poetry & Shyari lover
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Pratyush Srivastava
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पूनम की वो चाँदनी थी और रात के उस उजाले में उसका उड़ता हुआ दुपट्टा मेरी शर्ट में आ अटका था और इतनी ललक थी उसकी मुस्कान में उस दिन मानो पूर्णिमा का चाँद उतर कर उसके चेहरे पर आ लटका था || ©Pratyush Srivastava
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भरोसे की दीवार तोड़ हर दफा बद्तमीज़ी की हद जो लांघी है क्यों न कहोगी तुम हमें कमीना हमने कमीनेपन की दहलीज जो लांघी है|| ©Pratyush Srivastava
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भरता रहा मैं ज़िंदगी को सूद मेरा सल्तनत बिखर गया अदा हुआ न क़र्ज़ जिंदगी का मेरा वजूद खत्म हो गया | वक़्त के पहिये पर कुछ इस कदर सवार हुआ खुद खत्म होकर भी जिंदगी मैं तेरा कर्ज़दार हुआ || ©Pratyush Srivastava
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