अब आने वाले हर दुख को नमन करेंगे,
जरूरतों के लिए इच्छाओं का दमन करेंगे।
हम कल्पनाओं के पटल से आने को बाहर,
वास्तविकताओं के धरातल पर हवन करेंगे।
ह़यात के हारे हुए मुसाफिर फक़त रुकना नहीं,
मंजिलों पर पहुंँचकर दूर अपनी थकन करेंगे।
सादगी के रुप का अनुसरण होता नही अब,
जो मिलेगा हमको जैसा, वैसा आचरण करेंगे।
अब तो पापों की ये गठरी साथ ही ले जाएंगे,
आएँगे जो गंगा घट तुम्हारे बस आचमन करेंगे।
मोहब्बत का जिक्र हो तो सिर्फ प्यार की बातें करो,
बाद उसके क्या हुआ फिर कभी डिस्कशन करेंगे।
पूछते हो "कान्हा" क्या करोगे जो मिलोगे इस जन्म,
बस तुम्हारे सामने हम प्रभु आत्मसमर्पण करेंगे।
©Krishna Awasthi
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