कुछ अनपहचाने से
ख़्वाब मेरे
किसी अन्य नगरी से पधारकर
अचानक दस्तक भी दे जाते हैं
पर जब
उनसे जान पहचान हो जाती है
तो लुढ़क जाते हैं
कल्पनाओं के घिसलगुंडी से
में पलकें झाड़कर
वापिस चढ़ने जाता हूँ तो
टूटने लगती हैं
एक एक करके
उसकी सारी सीढ़िया
फिर दुबारा से
न तो उसके
सिरे से जुड़ ही पाता हूँ
न ठीक तरह से उन्हें
अलविदा ही केह पता हूँ
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