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aspirant poet
Viyom Johri
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अब मोहब्बत की ग़ुलामी हमसे और ना होगी इस राह पर चलाई हमसे और ना होगी जिस जगह धकेला तुमने वो भी क्या मंज़र था फिर सोचा इससे बड़ी खाई और ना होगी ©Viyom Johri
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तेरी मेरी बातें अब ख़त्म हो चलीं हैं कुछ रहीं यादें अब सितम हो चलीं हैं ©Viyom Johri
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क़लम की सियाहि से मेरे अब तुम पर बिसारत होगी तुम्हारे घर की छत से ऊँची, मेरे पन्नो की इमारत होगी चाहेंगे भी तुम्हें और तुम्हें ख़बर भी ना होगी मोहब्बत में यह मेरे जज़्बातों की शराफ़त होगी ©Viyom Johri
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