Savita Suman

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#बेटियां हथेली पर चांद रखने की तमन्ना रखती हैं हैं बेटियां तो घर हमारी जन्नत सी दिखती है खुशियों की वंदनवार है लगी हर जगह हंसी इनकी ऋचाओं सी हर जगह गुंजती है @सविता 'सुमन' ©Savita Suman

#बेटियां #कविता  #बेटियां 
हथेली पर चांद रखने की तमन्ना रखती हैं 
हैं बेटियां तो घर  हमारी जन्नत सी दिखती है 
खुशियों की वंदनवार है लगी हर जगह 
हंसी इनकी ऋचाओं सी हर जगह गुंजती है 
@सविता 'सुमन'

©Savita Suman
#कविता #Sad_Status #समय  White #समय 
जाने कितने रंग दिखलाता 
पलट कभी जो ना आता 
है कौन अपना पराया यहां 
समय सबकी पहचान कराता

©Savita Suman
#बस_थोड़ा_सा_प्यार #कविता  White 
#बस_थोड़ा_सा_प्यार 
सब कुछ मिल जाता है यहां 
 मिलता नहीं है "बस थोड़ा सा प्यार" 
जब भी किसी ने उम्मीद किया किसी से 
टूट कर रहा गया यहां बस सांसों का तार
कोई कैसे भुलाए खुद सारी बातों को 
मन के कोने में जो बिठाए सपनों का संसार 
सिक्कों की खनक में दब कर रह गया अक्सर 
तो कोई कर गया यहां इश्क का व्यापार 
बेइंतहा दर्द मिला यहां इश्क करने वालों को
नहीं मरके भी मिला यहां चैन‌-ओ-करार

©Savita Suman
#चीर_हरण #कविता  कितनों के चीर हरण करोगे तुम 
कितनों को टुकड़ों में काटोगे 
कितनों की लाज उतारोगे तुम 
कितनों को अब झुलसाओगे 
पर सुनलो ऐ नरभक्षी पुरूषों 
जब नारी अपने पे आएगी 
नर मुंडों के लहु से सनी होगी ये धरती 
शव फिर ना तुम गिन पाओगे 
है जिसे समझते तुम कोमल
वह भी आदिशक्ति की हीं रुप है 
घर में तुम्हारे बैठी मां बेटी 
दुर्गा की हीं स्वरूप है 
है जीवन तुमको गर प्यारी 
अपनी ग़लती स्वीकार करो
ठेकेदारों ऐ नारी तन के
बहुत हुआ अब बस भी करो 
कितना तुम मोल लगाओगे तन का
क्या शर्म तुम्हें जरा भी आती नहीं 
रहे सुरक्षित कन्या धरा पर
है तुम्हें क्या ये भाती नहीं

©Savita Suman
#कविता #safar  White आ जाओ की अब सांसें रुकने लगी है 

चलते चलते अब पांव भी  थकने लगी है 

दर्द है कि दिल से  कहीं जाता नहीं 

दिल में सूई सी कुछ अब चुभने लगी है 

अश्क है कि आंखों से रुकते नहीं 

बन के सावन सी ये बरसने लगी है 

थक गयी है ये सांसें पुकार कर अब तुमको 

शब्द होंठों में दबी दबी सी अब  रहने लगी है 

है सफर कितना मालूम नहीं ज़िन्दगी का बांकी

हमसफ़र मेरे अब दम घुटने लगी है 

पुकार लो कहीं से मुझको देकर आवाज 

ज़िन्दगी अब बोझ मुझको लगने लगी है 

चलेंगे मिलके कहीं  किसी और जहां में 

दिल से आवाज अब ये निकलने लगी है 

नहीं मालूम है मंजिल कहां इस सफर का

दे कर दिलासा अब  वक्त भी जाने लगी है

©Savita Suman

#safar

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#सप्तपदी_के_बंधन #सप्तपदी #कविता  

#सप्तपदी के बंधन 

तुम्हारा मिलना और बिछड़ जाना 

दोनों हीं इत्तेफाक था शायद, 

पर कुछ तो वजह होगी ना इसमें ?

तुम ले तो नहीं जा सके कुछ भी यहां से 

पर छोड़ गए हो अनगिनत प्रश्न चिन्ह, 

मुझे भर  कर दे गए हो एक यादों का पिटारा। 

मैं तुम्हारी ऊंगली पकड़ कर चलना जानती थी, 

बिना उंगलियों के सहारे तो मैं चल हीं नहीं पाती थी कभी। 

पर तुम्हारी अनुपस्थिति ने मुझे सिखाया है अकेले चलना 

सुनसान रास्ते पर भी बेख़ौफ़ चलना।

जानते हो क्यों मैं इतनी निडर हो गई हूं क्योंकि तुम्हारे खोने का भय निकल गया मेरे अन्दर से अब ।और वो अदृश्य उंगलियां जो शायद किसी को नजर नहीं आती, पर मेरी ऊंगलियो को आज‌ भी‌ कस कर पकड़े हुए हैं।

मैंने महसूस किया है तुम्हें हर सफर में साथ साथ 

मेरी आंखों के बहते आंसुओं ने भिगोया होगा तुम्हारी ऊंगलियो के पोरों को शाय़द। तुम्हारी ऊंगलियो की आखिरी छुअन

आज भी मेरी हाथेली में कैद है और मैं आजाद होकर भी बंधी हूं तुमसे सप्तपदी के बंधन में सांसों के आखिरी फेरे तक।

@सविता 'सुमन'

©Savita Suman
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