सर्द मौसम था रात भी हसीन थी l
सुनहरी रात में जमी भी रंगीन की l
तारों के बीच में चांद को निहारता रहाl
रात भर निहारता रहा, बात भी संगीन थी l
मोहब्बत की दास्तां भी, हमारी ग़मगीन थी l
करता रहा उसे पाने की दुआ, दुआ मेरी अमीन थी l मालूम है कि होगी ना, किसी और की भी l
पर चाहतों की मन्ज़िल की, दास्तां भी l
यकीनन ही थी, रंजिश भी कुछ अजीब सी l
लोग कहते थे, कि है वह है चांद सी मगरूर l
यकीनन वह भी तो, तारों के बीच में ही l
सूरज की रोशनी से, लगती है बहुत हसीन थी l
ख़्वाहिश मेरी भी, बीच जाऊं पूर्णिमा सा l
अपने अपनी बाहों में भर, रंगीन कर दूँ l
दर्शनीय हो जाए, पूर्णिमा सी l
प्रेम की भवधरा सी, स्नेह का स्नान कर लूँ l
By #R@H! Chauhan
©Rahi Chauhan
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