सफ़र मंजिल से बेखबर, सपनों से दोस्ती कर,
चल पड़ा हूँ एक ऐसे ही सफर पर।
ना कोई खबर है ठौर की ना ठिकाना है,
खुद को मालूम नही जाना कहाँ है।
निकल पड़ा हूँ तो कुछ हासिल कर लौटूंगा,
सफर के जरिये राहों से दोस्ती कर बैठूंगा।
सफ़र मंजिल से बेखबर, सपनों से दोस्ती कर,
चल पड़ा हूँ एक ऐसे ही सफर पर।
ना कोई खबर है ठौर की ना ठिकाना है,
खुद को मालूम नही जाना कहाँ है।
निकल पड़ा हूँ तो कुछ हासिल कर लौटूंगा,
सफर के जरिये राहों से दोस्ती कर बैठूंगा।
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इस कद्र घोर अंधेरा छाया हुआ है,
पूनम को अमावस सा बनाया हुआ है।
छिप गया चाँद भी किन्ही बादल के झुंड मैं,
क्या रात पर रात का ही साया हुआ है।।
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