हर बार ये जरूरी नहीं कि तुम समझो सबको,
अब ये समझो...गुंनु...की तुम्हें जरूरी समझता कौन है...
जाने वाले तो चले जाते हैं,
फ़र्क इससे पड़ता है कि वापस पलटता कौन है,
हर बार ये जरूरी नहीं कि तुम समझो सबको,
अब ये समझो...गुंनु...की तुम्हें जरूरी समझता कौन है...
किसके ख्यालो में गुजर जाती है शाम मेरी,
समझ नहीं आता दिमाग मे चलता कौन है,
हर बार ये जरूरी नहीं कि तुम समझो सबको,
अब ये समझो...गुंनु...की तुम्हें जरूरी समझता कौन है...
जानना हो कि तुम्हारा भी है क्या कोई,
तो ये देखना तुम्हारी आंखें पढ़ता कौन है,
हर बार ये जरूरी नहीं कि तुम समझो सबको,
अब ये समझो...गुंनु...की तुम्हें जरूरी समझता कौन है...✍️
©WriterGunnu
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