अपर्णा विजय

अपर्णा विजय

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मुस्कुराता है ऊपर से अंदर से जो लहू लुहान है क्या करें बिचारा दी गई उसे पुरुष की पहचान है के मजबूत हो तुम रो नहीं सकते जो दिखते हो ऊपर से वह अंदर हो नहीं सकते दिल तो तुम्हारा भी, दुखता है पर बता नहीं सकते पुरुष हो ना तुम इसलिए ग़म अपना जमाने को जता नहीं सकते ओढ़ कर वो नकली मुस्कुराहट का लिबास हर दिन सफर करता है टूटता है गिरता है उठता है और बिखरता है घर की जरूरत का गुणा भाग कर तमाम परेशानियों को सबसे,छिपाकर न जाने किन ख्यालों से गुजरता है प्यार और दुलार की उसे भी दरकार होती है तबीयत तो उसकी भी नासाज और बीमार होती है आसान नहीं है होना आदमी यहां हिस्से में जिसके धूप कम होती है दामन थामे इनका शब ए तार होती है । अपर्णा विजय ©अपर्णा विजय

#पुरुष #कविता  मुस्कुराता है ऊपर से 
अंदर से जो लहू लुहान है
क्या करें बिचारा 
दी गई उसे पुरुष की पहचान है
के मजबूत हो तुम रो नहीं सकते
जो दिखते हो ऊपर से
 वह अंदर हो नहीं सकते
दिल तो तुम्हारा भी,
दुखता है पर बता नहीं सकते
पुरुष हो ना  तुम इसलिए  
ग़म अपना
जमाने को जता नहीं सकते
ओढ़ कर वो
नकली मुस्कुराहट का लिबास
हर दिन सफर करता है
टूटता  है गिरता है 
उठता है और बिखरता है
घर की जरूरत का गुणा भाग कर
तमाम परेशानियों को 
सबसे,छिपाकर
न जाने किन ख्यालों से गुजरता है
प्यार और दुलार की
 उसे भी दरकार होती है
तबीयत तो उसकी भी
 नासाज और बीमार होती है
आसान नहीं है होना आदमी यहां
हिस्से में जिसके धूप कम होती है
दामन थामे इनका शब ए तार होती है ।

अपर्णा विजय

©अपर्णा विजय

मुस्कुराता है ऊपर से अंदर से जो लहू लुहान है क्या करें बिचारा दी गई उसे पुरुष की पहचान है के मजबूत हो तुम रो नहीं सकते जो दिखते हो ऊपर से वह अंदर हो नहीं सकते दिल तो तुम्हारा भी, दुखता है पर बता नहीं सकते पुरुष हो ना तुम इसलिए ग़म अपना जमाने को जता नहीं सकते ओढ़ कर वो नकली मुस्कुराहट का लिबास हर दिन सफर करता है टूटता है गिरता है उठता है और बिखरता है घर की जरूरत का गुणा भाग कर तमाम परेशानियों को सबसे,छिपाकर न जाने किन ख्यालों से गुजरता है प्यार और दुलार की उसे भी दरकार होती है तबीयत तो उसकी भी नासाज और बीमार होती है आसान नहीं है होना आदमी यहां हिस्से में जिसके धूप कम होती है दामन थामे इनका शब ए तार होती है । अपर्णा विजय ©अपर्णा विजय

#पुरुष #कविता  मुस्कुराता है ऊपर से 
अंदर से जो लहू लुहान है
क्या करें बिचारा 
दी गई उसे पुरुष की पहचान है
के मजबूत हो तुम रो नहीं सकते
जो दिखते हो ऊपर से
 वह अंदर हो नहीं सकते
दिल तो तुम्हारा भी,
दुखता है पर बता नहीं सकते
पुरुष हो ना  तुम इसलिए  
ग़म अपना
जमाने को जता नहीं सकते
ओढ़ कर वो
नकली मुस्कुराहट का लिबास
हर दिन सफर करता है
टूटता  है गिरता है 
उठता है और बिखरता है
घर की जरूरत का गुणा भाग कर
तमाम परेशानियों को 
सबसे,छिपाकर
न जाने किन ख्यालों से गुजरता है
प्यार और दुलार की
 उसे भी दरकार होती है
तबीयत तो उसकी भी
 नासाज और बीमार होती है
आसान नहीं है होना आदमी यहां
हिस्से में जिसके धूप कम होती है
दामन थामे इनका शब ए तार होती है ।

अपर्णा विजय

©अपर्णा विजय

लिबास की तरह दोस्ताना बदलता है हर दिन ये अपना ठिकाना बदलता है इंसान है यह जनाब परिंदा तो नहीं इसलिये हर रोज आशियाना बदलता है ©अपर्णा विजय

#कविता #lovebirds  लिबास की तरह 
दोस्ताना बदलता है
हर दिन ये अपना 
ठिकाना बदलता है
इंसान  है  यह  जनाब
  परिंदा  तो  नहीं  
इसलिये  हर रोज 
आशियाना बदलता है

©अपर्णा विजय

#lovebirds

12 Love

#कविता #मेरा  ।। गांव छोड़ आया ।।

सुकून की चाह में गांव छोड़ आया 
पीपल की ठंडी छांव छोड़ आया 
मां के आंचल की पनाह छोड़ आया 
बाबा का प्यार और बाँह छोड़ आया 

कच्चे मकान की ठाँव छोड़ आया 
शहर की चाह में गांव छोड़ आया
 आम पर कोयल की कूक छोड़ आया 
चूल्हे पर अपनी भूख छोड़ आया 

मिट्टी का घड़ा और प्यास छोड़ आया 
चौका डेहरी मुंडेर उदास छोड़ आया 
पलाश के वो  सारे रंग छोड़ आया 
जीने के तरीके और ढंग छोड़ आया 

कांधे पर यारों के हाँथ छोड़ आया 
रिश्तो की डोर और साथ छोड़ आया
 मधुर बयार का गीत छोड़ आया
बचपन का अपना मीत छोड़ आया 

आंगन मे तुलसी और खाट छोड़ आया 
सितारों से भरी वो रात छोड़ आया 
कंचे की बाजी और जीत  छोड़ आया 
तीज त्योहारों की रीत छोड़ आया 

वो तालाब  पगडंडी खलिहान छोड़ आया 
ख़प्पर का कच्चा मकान छोड़ आया
 पीतल के अपने वो राम छोड़ आया
बापू की छोटी दुकान छोड़ आया 
 
गांव में मैं अपनी जान छोड़ आया
बचपन का अपना वो नाम छोड़ आया।।।।।

©अपर्णा विजय

©अपर्णा विजय

#मेरा गांव

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#किस्से #कविता #5LinePoetry  #5LinePoetry काफिलों के साथ 
बंटती नंही तन्हाईयां 
रुखसत होती है रूह, 
रह जाती है रुसवाईयां
कब हुई हैं  ये  महफिलें  
कमबख्त किसी की
अक्सर तन्हा छोड़ देती हैं 
अपनी ही परछाइयां

©अपर्णा विजय

©अपर्णा विजय

#किस्से जिंदगी के

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#कविता #सफर  काफिलों के साथ
 बंटती नंही तन्हाईयां 
रुखसत होती है रूह, 
रह जाती है रुसवाईयां
कब हुई हैं  महफिलें  
कमबख्त किसी की
अक्सर तन्हा छोड़ देती हैं 
अपनी ही परछांइया

©अपर्णा विजय

#सफर

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